उत्कर्ष सिन्हा
जिस बात का वादा भारतीय जनता पार्टी करती थी वह उसने आंशिक रूप से ही सही , मगर पूरा कर दिया । सालों से राजनीतिक बहस का मुद्दा बनी हुई भारतीय संविधान की धारा 370 अब भले ही संविधान के एक पन्ने के रूप में मौजूद है मगर अपना असर खो चुकी है ।
मगर जिस तरह से ये काम हुआ है उस पर सवाल खड़े हो रहे हैं । सवाल इस पूरी प्रक्रिया के संविधान सम्मत होने पर हैं और कुछ सवाल लोकतान्त्रिक मूल्यों के भी । लेकिन अपनी परिचित शैली में भाजपा नेता इस बहस को आम आदमी के बीच राष्ट्र भक्त और राष्ट्र विरोधी के खेमों में बांटने में जुटे हुए हैं ।
सोशल मीडिया उन्माद से भर हुआ है और कश्मीरी आवाम के लिए मजाकिया स्वरूप में नफरत भरे संदेशों को एक समूह लगातार फारवर्ड कर रहा है । कुल मिल कर एक ऐसा माहौल बनाने की कोशिश है जिसे शोर में सवालों को दबाया जा सके ।
संविधानविद इस बात पर चकित हैं कि बिना किसी राज्य की विधानसभा से सहमति लिए हुए उसे न सिर्फ बाँट दिया गया बल्कि केंद्र शासित प्रदेश में बदल दिया गया । वे इस बात पर भी सवाल उठा रहे हैं कि आखिर जिस धारा को संशोधित करने की बात है उसके लिए उसी धारा के उपबंधों को प्रयोग कैसे किया जा सकता है ।
लेकिन फिलहाल ये बातें बेमानी है । अमित शाह की भाजपा को इन प्रक्रियाओं से फ़र्क नहीं पड़ता । वे संसद में फिलहाल जिगर की ताकत का जिक्र कर रहे हैं , संवैधानिक व्यवस्था का नहीं । तो मान लेना चाहिए कि “ जिसकी लाठी उसकी भैस “ का मुहावरा अब संसदीय प्रक्रिया बन चुकी है ।
इस हल्ले के बीच उसकी आवाज का पता नहीं है जिसके बारे में ये फैसला हुआ है । लोकतंत्र का तकाजा है कि ऐसे फैसले राय शुमारी से किए जाते हैं । मगर कश्मीर में धारा 144 लागू है , आवाजाही बंद है , और इंटरनेट सेवाए रोकी जा चुकी हैं । तो फिलहाल कश्मीरी आवाम के मन में क्या चल रहा है ये जानने का कोई रास्ता नहीं है।
अब तक प्रधानमंत्री ने कुछ नहीं बोला है । हमे उम्मीद है कि जब वे राष्ट्र को संबोधित करेंगे तो ये बाते जरूर कहेंगे – कश्मीर के लोगों के साथ अन्याय होता रहा है. कुछ राजनीतिक खानदान अपने फायदे के लिए कश्मीर के लोग गुमराह करते रहे । अब हम सबका साथ सबका विकास करेंगे। हम उन्हें मौका देंगे, कारोबार के रास्ते खोलेंगे। विकास को आखिरी व्यक्ति तक पहुंचाएंगे और कश्मीरी जनता का दिल जीत लेंगे , इसके बाद सारी आलोचना बेमानी हो जाएगी ।
ये तो तय है कि ये मामला आने वाले दिनों में ये राजनीतिक विवाद का मुद्दा बना ही रहेगा । कानून के जानकारों का मानना ये है कि सुप्रीम कोर्ट में भी इसे चुनौती मिल सकती है । सुप्रीम कोर्ट पहले ये कह चुका है कि धारा 370 संविधान की एक नियमित धारा है ।
लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या इस प्रक्रिया से कश्मीर में हिंसा रुक पाएगी ? कश्मीर में सालों से जारी हिंसा ने वहाँ के लोगों का जीवन दुश्वार कर रखा है । आम कश्मीरी आतंकवादियों और फौज के बीच उलझ रहा है । घाटी से निकालने वाले असंतोष की वजह इस फैसले के बाद और बढ़ेगी या फिर खत्म हो जाएगी ? ये सवाल भी फिज़ाओं में तैरने लगा है ? कश्मीर में फौज लंबे समय से तैनात है , मगर हिंसा नहीं रुकी।
यह भी पढ़ें : क्या ‘अनुच्छेद 370’ ही सारी समस्याओं की जड़ है!
कोई भी फौज दरअसल स्थिति को तात्कालिक रूप से तो नियंत्रित कर सकती है मगर स्थायी शांति की गारंटी नहीं दे सकती । उसके लिए आम आवाम का विश्वास बढ़ाना होता है । सवाल ये भी है कि जिस तरीके से कश्मीर मुद्दे पर काम हो रहा है वो इस विश्वास को बढ़ाएगा ?
बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब नोटबंदी का फैसला लिया था तब भी कई दावे किये थे , लेकिन उन दावों में से एक भी सफल नहीं हुआ उलटे अर्थव्यवस्था बुरी तरह लड़खड़ा गई । अब जब उसी शैली में कश्मीर पर फैसला हुआ है, तो ये सवाल भी लाजमी है कि इसके व्यापक नतीजे क्या होंगे ?
संसद में यह भी सवाल उठा कि क्या 370 के स्वरूप वाली धारा 371ए का क्या होगा ? यह कई उत्तर पूर्वी राज्यों में लागू है । इन राज्यों को क्या संदेश जाएगा ? इनमे से अधिकांश राज्यों मे उग्रवाद पहले भी रहा है, क्या वे उग्रवादी समूह फिर भड़केंगे ? अगर ऐसा हुआ तो निश्चित रूप से यह एक दुश्वारी वाली बात होगी ।
यह भी पढ़ें : कश्मीर : सवाल क्या का ही नहीं, कैसे का भी है ?
लेकिन फिलहाल तो संसद में संख्या बल का भरपूर इस्तेमाल करते हुए भाजपा सरकार ने अपने वोटरों को संतुष्ट कर दिया है । अब अगर इस मामले में सवाल बढ़ते हैं तो वे भी उसी ध्रुवीकरण को बढ़ाएंगे जिसकी जरूरत भारतीय राजनीति में भाजपा को हमेशा रही है।
यह भी पढ़ें : अनुच्छेद 370 हटने से घाटी में क्या होगा बदलाव
यह भी पढ़ें : ‘370 खत्म, श्यामा प्रसाद मुखर्जी का पूरा हुआ सपना’