सुरेंद्र दुबे
आइये आज हम 31 जुलाई को सोशल मीडिया पर वायरल बाराबंकी में एक स्कूल की एक छात्रा के उस निडर बयान की चर्चा करते हैं जिससे लग रहा था कि लड़किया अपनी सुरक्षा को लेकर किस कदर चिंतिंत हैं। उन्हें सिस्टम से कितनी नाराजगी है और यह सिस्टम समाज को यह भरोसा क्यों नहीं दे पा रहा है कि संविधान में वर्णित सुरक्षा के अधिकार पर लड़कियों को हरहाल में सुरक्षा मिलनी चाहिए।
छात्रा ने निडरता से पुलिस अफसर से सवाल पूछे और 24 घंटे में पूरा परिदृश्य बदल गया। जिस छात्रा की उसके मां-बाप को पीठ ठोकनी चाहिए थी वे इस कदर डर गए कि उन्होंने किसी अनहोनी की आशंका से छात्रा को स्कूल भेजना ही बंद कर दिया। यह डेवलपमेंट इस बात को दर्शाता है कि हमारा सिस्टम पूरी तरह सवालों के घेरे में है।
जब मैं सिस्टम की बात कर रहा हूं तो उसमें सरकार, नेता और पुलिस सभी को शामिल करके बात कर रहा हूं। हमारा सिस्टम के प्रति भरोसा क्यों उठता जा रहा है। क्या हम अपनी लड़कियों को खुले आसमान में उडऩे देने के स्थान पर घरों में कैद करने की मजबूरी में आ गए हैं। आइये हम दोनों दृश्यों का अवलोकन करें तो पता चल जायेगा कि ये कहा आ गए हम।
दृश्य एक- बाराबंकी में एक स्कूल में बालिका सुरक्षा जागरूकता कार्यक्रम में एक छात्रा ने पुलिस से सवाल किया-छात्रा कहती हैं, ‘हमने निर्भया केस देखा, फातिमा का केस देखा तो क्या गारंटी है कि अगर हम प्रोटेस्ट करते हैं…प्रोटेस्ट करना चाहिए लेकिन अगर हम प्रोटेस्ट करते हैं तो क्या हमें इंसाफ मिलेगा। मैं प्रोटेस्ट करती हूं तो क्या गारंटी है कि मैं सेफ सुरक्षित रहूंगी। क्या गारंटी है कि मेरे साथ कुछ नहीं होगा।’
दृश्य दो- बालिका सुरक्षा जागरूकता कार्यक्रम में सवाल पूछने वाली छात्रा के परिजन डरे हुए हैं और उसे स्कूल भेजना बंद कर देते हैं और कहते हैं-सोमवार को स्कूल की प्रिंसिपल से मिलेंगे और उसके बाद ही इस पर फैसला करेंगे कि छात्रा को दोबारा स्कूल कब भेजना है।
बाराबंकी पुलिस स्कूली छात्राओं के लिए एक अभियान चला रही है, जिसमें छात्राओं को वीमेन हेल्पलाइन के बारे में बताया जाता है। 31 जुलाई को आनंद भवन विद्यालय में आयोजित बालिका सुरक्षा जागरूकता कार्यक्रम में अपर पुलिस अधीक्षक (उत्तर) आरएस गौतम छात्राओं को सुरक्षा के प्रति सचेत करते हुए टोल फ्री नंबरों की जानकारी दे रहे थे, तभी एक छात्रा ने उनसे यह सवाल पूछा कि अगर पुलिस से शिकायत करने पर आरोपी ने उसका उन्नाव बलात्कार पीडि़ता की तरह ‘एक्सीडेंट’ करवा दिया गया तो क्या होगा? अब ये वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हो रहा है।
अब दृश्य एक में वर्णित छात्रा का डर देखिए जिसके आधार पर वह पुलिस अफसर से पूछ रही है कि सुरक्षा के लिए दिए जा रहे टोल नंबर तो अपनी जगह है पर शिकायत करने पर उसकी भी उन्नाव रेप पीड़िता की तरह सड़क एक्सीडेंट में हत्या कराने की कोशिश की गई तो वह क्या करेगी? उसका ये सवाल बड़ा वाजिब था।
वीडियो चूंकि पूरे देश में वायरल हो रहा था तो जाहिर है उसके मां-बाप ने देखा होगा। जिससे वे इतना डर गए कि उन्होंने अपनी बेटी को स्कूल भेजना ही बंद कर दिया। मां-बाप का यह डर यह बताने के लिए काफी है कि सिस्टम पर हमें भरोसा नहीं रह गया है।
ये स्वाभाविक भी है। आये दिन बलात्कार व पीडि़ताओं की हत्या की खबरों से अखबार भरे रहते हैं। जाहिर है हर बेटी के मां-बाप डरे और सहमे हुए हैं। हम कैसे समाज में रह रहे हैं जहां हमारा सिस्टम से भरोसा ही उठ गया है और सिस्टम चलाने के जिम्मेदार लोग अपना कोई ऐसा चरित्र नहीं दिखा पा रहे हैं जिससे ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ का नारा साकार होता दिखे ।
निर्भया कांड वर्ष 2012 में हुआ था, जिसने पूरे देश में हलचल सी मचा दी थी। उसके बाद कड़े से कड़े कानून बने और लगभग एक हजार करोड़ रुपए के फंड से एक निधि स्थापित की गई जिसका उद्देश्य देश में बच्चियों को वहशी लोगों से बचाने की योजना बनाई जानी थी। फंड अपनी जगह पर है और बच्चियों का दर्द व उनके अभिभावकों का डर अपनी जगह बना हुआ है।
उन्नाव रेप कांड से संबंधित हालिया घटनाओं ने ये साबित कर दिया है कि सिस्टम जितना निर्भया कांड के समय लाचार था उतना ही आज भी लाचार है। और सेंगर जैसे लोग आज भी सिस्टम की घुड़इया चढ़े लोगों को चिढ़ाते व डराते घूम रहे हैं। निर्भया कांड के समय भी उच्चतम न्यायालय ने अनुकरणीय सख्ती का परिचय दिया था और 1 अगस्त को सेंगर मामले में भी ऐतिहासिक व अनुकरणीय सख्ती दिखाई। पर अगर एक छात्रा के अभिभावक उसके बयान से इतने डरे हुए हैं तो ये साफ-साफ समझा जा सकता है कि हम एक ऐसे मोड़ पर आ गए हैं जहां हमारे सामने एक अंधी गली है और हम यह सोचने को मजबूर हो गए हैं-ये कहां आ गए हम ।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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