सैय्यद मोहम्मद अब्बास
क्रिकेट में अक्सर किसी न किसी खिलाड़ी का दौर होता है। क्रिकेट की पिच पर एक खिलाड़ी का सिक्का अगर चल रहा है तो यह भी तय है कि उसका दौर भी खत्म होगा। भारतीय क्रिकेट के इतिहास पर गौर करे तो तमाम ऐसे उदाहरण मिलेंगे जब खिलाड़ी क्रिकेट की बुलिन्दयों पर पहुंचने के बाद एकाएक वह भी खत्म हो जाता है लेकिन कुछ खिलाड़ी ऐसे भी होते हैं जिनका स्टारडम संन्यास के बावजूद कम नहीं होता है।
70 से 80 के दशक में कपिल बनाम गावस्कर
70 से 80 के दशक में भारतीय क्रिकेट के लिए सुनील गावस्कर सब कुछ हुआ करते थे। हालांकि इसके बाद सचिन तेंदुलकर भारतीय क्रिकेट ही नहीं बल्कि विश्व क्रिकेट पर एक छत्र राज देखने को मिला। उनकी बल्लेबाजी का एक लम्बा दौर विश्व क्रिकेट ने देखा है। दूसरी ओर भारतीय क्रिकेट कुछ खिलाडिय़ों को लेकर हमेशा रस्साकशी देखने को मिलती रही है। उदाहरण के लिए 70 से 80 में सुनील गावस्कर बनाम कपिल देव। इस दौर दोनों के बीच कप्तानी को लेकर खिंचातानी देखने को मिली थी।
90 के दशक में अजहर बनाम सचिन
इसके बाद यही कारवां सचिन बनाम अजहर के बीच देखने को मिली। हालांकि अजहर उस दौर में भारतीय क्रिकेट के सबसे बेहतरीन कप्तान हुआ करते थे लेकिन एक बार अजहर को हटाकर सचिन के हाथों टीम की कमान दी गई थी। सचिन कप्तानी में नाकाम रहे और बाद में अजहर फिर से टीम इंडिया के कप्तान बने।
2000 में दादा का परचम बुलंद रहा
इसके बाद का दौर सौरभ गांगुली के नाम रहा है। ये वो दौर था जब जॉन राइट कोचिंग के सहारे दादा लगातार जीत का डंका बजता रहा। इसी समय वीरू, कैफ, युवी व गौती जैसे खिलाड़ी भी भारतीय क्रिकेट में अपनी अलग पहचान बना चुके थे लेकिन चैपेल के आने के बाद यही खिलाड़ी उपेक्षा का शिकार हो गए। राहुल द्रविड़ की कप्तानी में साल 2007 विश्व कप में बुरी तरह से पीट गई थी टीम इंडिया।
माही के दौर में वीरू, गौती युवी व कैफ जैसे खिलाड़ी नहीं बचा पाये अपनी जगह
इसके बाद माही टीम इंडिया के नये कप्तान बन गए। कहा जाता उन्हें कप्तान बनाने में सचिन तेंदुलकर का बहुत बड़ा योगदान था लेकिन माही ने बाद में अपने हिसाब से टीम को तैयार करना शुरू कर दिया। इतना ही नहीं माही ने टीम में भारी बदलाव करते हुए अचानक से मोहम्मद कैफ जैसे खिलाड़ी को भी दोबारा मौका नहीं देना का अवसर नहीं दिया जबकि सहवाग व गम्भीर जैसे खिलाड़ी सीनियर होने के बावजूद माही का साथ न मिलने की वजह से अपने करियर को बचाने के लिए संघर्ष करते नजर आये।
गौती ने खोला माही के खिलाफ मोर्चा
गौतम गम्भीर ने माही को लेकर बड़ी बात कही है। उन्होंने धोनी के संन्यास के बीच बड़ा दावा करते हुए कहा है कि माही ने साल 2015 विश्व कप को लेकर पहले ही अपना मन बनाते हुए तय किया था कि सचिन, वीरू और मैं नहीं खेलेंगे। इतना ही नहीं ऑस्ट्रेलियाई दौरे में उन्होंने तीनों खिलाडिय़ों को लेकर बड़ा कदम उठाते हुए कहा था कि अंतिम 11 में एक साथ मौका नहीं देंगे। गम्भीर ने साल 2012 की बात को उठाते हुए कहा कि सचिन, सहवाग और गंभीर एक साथ नहीं खेलाना चाहते थे क्योंकि उनका क्षेत्ररक्षण ठीक नहीं था।
कई खिलाडिय़ों को संन्यास लेेने पर होना पड़ा मजबूर
अगर थोड़ा पीछे जाये तो पता चलेगा कि दादा को भी संन्यास लेने पर मजबूर होना पड़ा जबकि सचिन तेंदुलकर ने वन डे क्रिकेट से संन्यास बहुत खामोशी से लिया था लेकिन टेस्ट क्रिकेट से अलविदा कहने के लिए बीसीसीआई ने स्पेशल सीरीज आयोजित की ताकि क्रिकेट के भगवान सम्मानपूर्वक क्रिकेट से किनारा करे। हाल में अंबाती रायडु जैसे क्रिकेटर को लगातार उपेक्षा शिकार होना पड़ा तो उन्हें क्रिकेट से अचानक विदाई लेनी पड़ी।
माही का दौर हुआ खत्म
अब जब माही पर संन्यास का दबाव बढ़ रहा है तो उन्हें क्या अचानक क्रिकेट को छोडऩा नहीं चाहिए। बीसीसीआई को अब तय करना है कि माही में कितनी क्रिकेट बचे है। कुल मिलाकर जो माही ने अन्य क्रिकेटरों के साथ किया, चाहे उसके पीछे भारतीय क्रिकेट की भलाई हो तो फिर माही को भी संन्यास लेना चाहिए ताकि युवा खिलाड़ी को अगले विश्व कप के लिए तैयार किया जा सके।