उत्कर्ष सिन्हा
राजनीति का सिर्फ एक ही साध्य है सत्ता। सिद्धांतवादियों को या बात भले ही पसंद न आये मगर फिलहाल तो यही मन्त्र है। और इस मन्त्र का उच्चारण असीमित ताकत से भरी भारतीय जनता पार्टी जोर जोर से कर रही है।
कर्नाटक में राजनीतिक नाटक ख़त्म नहीं हो रहा, लेकिन गोवा में सामूहिक दल बदल हो चुका है। गोवा में सत्ता संतुलन साधने में लम्बे समय तक फंसी रही भाजपा अब प्रचंड बहुमत पा चुकी है। भले ही यह जनता का मैंडेट न हो, मगर विधानसभा में तो जोरदार बहुमत मिल ही गया।
अब बारी बंगाल की है। बंगाल को अमित शाह अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना चुके हैं। बंगाल के विधान सभव के पिछले चुनावो में ममता बनर्जी ने भाजपा के अश्वमेध का घोड़ा रोक दिया था , मगर हाल ही में हुए लोकसभा चुनावो के नतीजे बता रहे हैं कि एक तरफ ममता बनर्जी लड़खड़ाने लगी हैं तो दूसरी तरफ अमित शाह के सिपहसालार दोगुनी तेजी से हमलावर हैं।
बंगाल में जिस मुकुल रॉय को भाजपा ने अपना सिपहसालार बनाया है , वे कभी ममता बनर्जी के सेनापति थे. शारधा घोटाले की आंच मुकुल तक पहुँच ही रही थी कि उन्होंने भाजपा का दमन थाम लिया। इसके बाद मुकुल रॉय ने ममता बनर्जी के खिलाफ मोर्चा सम्हाल लिया।
मुकुल बंगाल की राजनीति का मिजाज जानते हैं। वे बखूबी वाकिफ हैं की ममता बनर्जी को मिली सत्ता के पीछे वो ही कैडर है जो एक ज़माने में कम्युनिस्टों का कैडर हुआ करता था जिसे ममता ने तृणमूल कांग्रेस के साथ जोड़ लिया। अब मुकुल भी उसी राह पर है।
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मुकुल रॉय ने एक सूची दिखते हुए दावा किया है की तृणमूल , कम्युनिस्ट और कांग्रेस के 107 विधायक जल्द ही भाजपा में शामिल होंगे। कोलकाता में भाजपा के नए दफ्तर में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुकुल राय ने यह सूची मीडिया को देने और विधायकों के नाम को सार्वजनिक किए जाने से इनकार कर दिया। उनका दावा है कि ये सभी विधायक एक-एक कर पार्टी की सदस्यता लेंगे, जो अगस्त के पहले सप्ताह से शुरू होगा।
जाहिर है ये संख्या बड़ी है। फिलहाल बंगाल विधान सभा में मात्र 3 ही विधायक है। लोकसभा में सारी ताकत लगा देने के बाद और मोदी मैजिक के सहारे भी भाजपा को 18 सीट ही मिली थी। अब बंगाल में विधानसभा चुनाव हैं , तो भाजपा हर हाल में अपनी संख्या बढ़ाने में लगी है।
यह सोचना ज्यादा कठिन नहीं है कि इन 107 विधायकों के अचानक होने वाले मन परिवर्तन के पीछे क्या वहज है।
राजनीति में सब कुछ जायज है। एक वक्त में “चाल, चेहरा और चरित्र” के दम पर राजनीति करने के बाद अब “साम दाम दण्ड भेद” के इस सिद्धांत का भरपूर मुज़ाहरा फिलहाल भाजपा तो कर ही रही है।
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