Monday - 28 October 2024 - 10:55 AM

कहां के छात्र पढ़ेंगे ‘राष्ट्र निर्माण में आरएसएस की भूमिका’ का पाठ

न्यूज डेस्क

किताबों के पाठ्यक्रम में बदलाव को लेकर देश में कई बार विरोध हुआ है। इतिहास के साथ छेड़छाड़ कोई नई बात नहीं है। पिछले महीने राजस्थान की स्कूली किताबों में विनायक दामोदर सावरकर के नाम के आगे से ‘वीर’ हटा लिया गया, जिसका बीजेपी ने विरोध किया था।

एक बार फिर किताबें चर्चा में हैं। दरअसल महाराष्ट्र की नागपुर विश्वविद्यालय के बीए द्वितीय वर्ष के छात्रों को राष्ट्र निर्माण में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की भूमिका और उसका इतिहास पढ़ाया जायेगा।

यह भी पढ़ें: इस लचर व्यवस्था से कब निजात मिलेगी?

यह भी पढ़ें: फिटनेस में किसको पछाड़ पहले पायदान पर पहुंचे मोदी

कांग्रेस के छात्र संगठन नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) ने पाठ्यक्रम में इसे शामिल किए जाने को लेकर यूनिवर्सिटी प्रशासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने की बात कही है।

एनएसयूआई के जिला इकाई के प्रमुख आशीष मंडपे के नेतृत्व में एनएसयूआई के सदस्यों ने 9 जुलाई को यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर सिद्धार्थ काणे से मुलाकात कर अपना विरोध जताते हुए इस अध्याय को पाठ्यक्रम से हटाने की मांग की। हालांकि काणे ने उनकी मांग को अस्वीकार कर दिया। उन्होंने कहा कि ‘हम इस तरह की मांगों को स्वीकार नहीं कर सकते। ‘

इससे पहले यूनिवर्सिटी ने पाठ्यक्रम से ‘राइज एंड ग्रोथ ऑफ कम्युनिज्म’ का हिस्सा हटा दिया था, जिसमें संघ की भूमिका पर चर्चा की गई थी। इसके साथ ही हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग वाला हिस्सा भी हटा दिया है और इसके स्थान पर राष्ट्र निर्माण में आरएसएस की भूमिका को पाठ्यपुस्तक में शामिल किया।

महाराष्ट्र युवा कांग्रेस के महासचिव अजीत सिंह ने कहा, ‘हमने वाइस चांसलर को बताया कि आरएसएस ने स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा नहीं लिया था इसलिए राष्ट्र निर्माण में आरएसएस की भूमिका के बारे में बताने का कोई औचित्य नहीं है। बल्कि आपको स्वतंत्रता संग्राम के दौरान आरएसएस के नकारात्मक पहलुओं के बारे में बताना चाहिए।’

वहीं महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक चव्हाण ने इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया देते हुए ट्वीट कर कहा कि छात्रों को यह पढ़ाया जाना चाहिए कि किस तरह आरएसएस ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन, भारतीय संविधान और राष्ट्रीय ध्वज का विरोध किया था।

वाइस चांसलर सिद्धार्थ काणे ने कहा, ‘आरएसएस का इतिहास 2003 से मास्टर्स डिग्री के पाठ्यक्रम का हिस्सा रहा है। इस साल से इसे स्नातक स्तर के पाठ्यक्रम में भी शामिल किया गया । मैंने एनएसयूआई के प्रतिनिधिमंडल को इसके बारे में बताया था बल्कि वे पाठ्यक्रम से आरएसएस के हिस्से को हटाने की मांग कर रहे थे।’

यह भी पढ़ें: मीडिया की एंट्री पर पाबंदी पर निर्मला का क्या है स्पष्टीकरण

यह पूछने पर कि पाठ्यक्रम में किस पर अधिक ध्यान केंद्रित किया गया है? इस पर काणे ने कहा, ‘यह राष्ट्र निर्माण में आरएसएस की भूमिका पर केंद्रित है। यह 1885-1947 की अवधि के दौरान इतिहास की परीक्षा का सिर्फ हिस्सा है। यह 1947 के बाद से आरएसएस के इतिहास के बारे में नहीं है। काणे ने यह भी बताया कि एमए के इतिहास के पाठ्यक्रम में एक अध्याय आरएसएस के संस्थापक केबी हेडगेवार पर है।

काणे ने तर्क देते हुए कहा कि, ‘बीए के पाठ्यक्रम में कांग्रेस के इतिहास पर भी अध्याय है, ऐसे में कल कोई और इसे हटाने की मांग कर सकता है। हम इस तरह की मांगों को पूरा नहीं कर सकते।’

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com