सुरेंद्र दुबे
जबसे लोकसभा में तीन तलाक बिल पेश हुआ है तब से लोगों को शाहबानो की भी याद आने लगी है। वह महिला , जिसे सुप्रीम कोर्ट ने गुजारा भत्ता के लिए 150 रुपए महीना उसके पति द्वारा दिए जाने का आदेश दे दिया था, जिसे कठमुल्लाओं के दबाओं में 407 सांसदों का प्रचण्ड बहुमत रखने वाली राजीव गांधी सरकार ने इसलिए पलट दिया था कि कहीं मुसलमान इससे नाराज न हो जाएं।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को बदलने के लिए बाकायदा संसद में संविधान संशोधन संबंधी एक बिल पारित कराया गया। ये शायद पूरी दुनिया में पहला ऐसा मामला होगा, जहां किसी एक व्यक्ति विशेष को कानूनी राहत से वंचित करने के लिए संविधान में संशोधन किया गया।
शाहबानो ने न अपने पति के संपत्ति के हिस्सा मांगा था और न ही किसी की संपत्ति हथिया ली थी। उसने दो जून की रोटी के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और कोर्ट ने कानून के अनुसार उसे 150 रुपए प्रति माह गुजारा भत्ता देने का आदेश दे दिया। आज जब इस घटना को हम लोग याद करते हैं तो बड़ी तकलीफ होती है कि एक तलाकशुदा महिला से उसके मुंह से निवाला सिर्फ इस लिए छीन लिया गया कि कुछ लोगों को लगा कि इससे इस्लाम खतरे में आ जाएगा।
वैसे पिछले लोकसभा कार्यकाल में भी तीन तलाक का मसला छाया रहा, परंतु सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक बार में तीन तलाक दिये जाने को गैर इस्लामिक करार दिए जाने तथा उसके उपरांत सरकार द्वारा तीन तलाक बिल लोकसभा से पास कराया गया, परंतु राज्यसभा में ये बिल बीजेपी का बहुमत न होने के कारण सरकार को अध्यादेश जारी करना पड़ा। अब सरकार फिर इसके लिए बिल ले आई है और वहीं ताकतें जिन्होंने पिछली बार इसे कानून नहीं बनने दिया था, फिर अपने नापाक इरादे लेकर टांग अड़ाने की जुगत में लग गई हैं।
शाहबानो के साथ ही साथ इन दिनों पूर्व केंद्रीय मंत्री आरिफ मोहम्मद खान भी सुर्खियों में आ गए है, जिन्होंने शाहबानो से संबंधित कानून न बनाए जाने के लिए राजीव गांधी सहित तमाम नेताओं को ये समझाने की कोशिश की, कि ऐसा करके वे अपने ही ताबूत में कील ठोकने का काम करेंगे। खैर, सरकार नहीं मानी और उसने मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड के दबाव में आकर शाहबानो मामले में दिए गए निर्णय को बदलवा दिया।
अब ये दबाव असल में किसका था , इसका खुलासा पूर्व केंद्रीय मंत्री आरिफ मोहम्मद खान ने खुद ही अपने इंटरव्यू में किया है। इनका दावा है कि कांग्रेस के तमाम नेता कानून न बनाए जाने की बात को मान गए थे, परंतु मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड के अलंबरदारों ने सरकार पर इतना दबाव बनाया कि शाहबानो को इंसाफ देने के बजाए सरकार ने उसके मुंह से उसका निवाला छीन लिया।
ये खुलासा स्वयं आरिफ मोहम्मद ने किया है कि सरकार पर दबाव बनाने के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के लोगों ने न केवल सांसदों की टांग तोड़ देने की धमकी दी, बल्कि संसद में सुप्रीम कोर्ट के जजों को भी खरी-खोटी सुनाई। इन लोगों ने संसद से यहां तक कहा कि क्या कोर्ट में बैठे तेली-तमोली हमें बताएंगे कि मुस्लिम समाज कैसे चलेगा।
आरिफ मोहम्मद का मानना है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के दबाव में कांग्रेस की इस घटिया कार्रवाई ने हिंदू बुरी तरह नाराज हुए। कांग्रेस को ऐसा सबक सिखाया कि 407 सांसदों वाली पार्टी अब 54 सांसदों की पार्टी रह गई है। ध्रुवीकरण की असली शुरूआत इस घटना से हुई। परंतु आज भी कांग्रेस उसी मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के दबाव में है, जिसके वजह से कांग्रेस इस दुर्गति को पहुंची है।
एक टीवी चैनल को दिए गए इंटरव्यू में आरिफ मोहम्मद खान ने यहां तक दावा किया कि जब मोदी के पिछले कार्यकाल में तीन तलाक बिल लाया गया था तो उन्होंने कई सांसदों को समझाया था कि वे इस बिल का विरोध करके बिना वजह पार्टी के लिए मुसीबत न खड़ी करे। इस घटना के बाद लोकसभा तमाम पार्टियों ने इसका विरोध नहीं किया।
परंतु राज्यसभा में ये बिल आया तो मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य कई सांसदों पर दबाव बनाने में सफल रहे इसलिए राज्यसभा से ये बिल पारित नहीं हो सका और नतीजतन इस घटना ने बुरी तरह ध्रुवीकरण किया तथा कांग्रेस बुरी पराजय का सामना करना पड़ा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में कांग्रेस के नेता का नाम लिये बगैर ‘मुसलमानों को गटर में रहने दो’ बयान का ज़िक्र किया, जिसका जवाब देते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि शाहबानो के केस के बाद जब राजीव गांधी सरकार बिल ला रही थी तो मैं उसका विरोध कर रहा था लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के दबाव में सरकार में उनकी एक न चली, जिसके बाद उन्होंने थक हार कर कहा कि अगर मुसलमानों को गटर के गड्ढे में रहना है तो रहे अब मैं क्या कर सकता हूं।
तीन तलाक प्रथा को खत्म करने की ज़बरदस्त पैरवी करते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री ने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी से सीधे लोहा लिया था। शाहबानो मामले के राजीव मंत्रिमंडल से उन्होंने इस्तीफा भी दे दिया था। उस वाकिये याद करते हुए आरिफ बताते हैं कि राजीव सरकार ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के आगे घुटने टेक दिया था। कई कांग्रेसी नेता इस मामले को सिर्फ वोट बैंक की राजनीति और सांप्रदायिक ध्रुविकरण के लिए इस्तेमाल कर रहे थे। वरिष्ठ कांग्रेसी नरसिम्हा राव ने कहा कि हम समाज सुधारक नहीं, समाज सेवक हैं। कांग्रेस की इसी रवैये के कारण मुसलमान और हिंदुओं के बीच जो नफरत की दीवार 1986 में खड़ी हुई, उसकी वजह से दोनों के रिश्ते 1947 जैसे हो गए।
आरिफ के अनुसार, शाहबानो केस के बाद हिंदुओं को खुश करने के लिए राजीव गांधी ने राम मंदिर का ताला खुलवाया, जिससे नाराज हिंदू अगले चुनाव में उनसे अलग न हो जाए। मुसलमानों को आरक्षण के मामले में आरिफ ने कहा कि अब कंपटीशन का जमाना है न कि आरक्षण का। मुस्लिमों इस लायक बनाय जाए कि वे कंपटीशन को क्लीयर करें और आगे बढ़े।
आरिफ मोहम्मद खान ने ट्रिपल तलाक के बारे में कहा कि इस्लामिक कानून में तीन तलाक आपराधिक मामला है। तीन तलाक सिविल मामला नहीं है इसको हमेशा क्रिमिनल ऑफेंस माना गया है। फतवों की वेबसाइट पर ये देखने को मिलेगा कि 90 फीसदी फतवे तीन तलाक के वजह से जारी होते हैं, जिस दिन से तीन तलाक कानून बना है उस दिन से एक भी मामला नहीं आया है। उन्होंने बताया कि इस्लाम और अरब की संस्कृति अलग-अलग है। हमारे देश के मुसलमान अरबी संस्कृति को अपना रहे हैं, जिसके कारण वे समाज में अलग-थलग पड़ गए हैं।
पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता रहे आरिफ मोहम्मद खान ने ये साफ किया वो 12 साल पहले चुनावी राजनीति से अलग हो चुके हैं और आगे भी इससे दूर रहेंगे। हालांकि, उन्होंने ये साफ किया कि अगर राष्ट्रीय महत्व से जुडी कोई जिम्मेदारी उन्होंने दी जाती है तो वो स्वीकार करेंगे।
क्या है शाहबानो केस
शाहबानो से जुड़ा यह पूरा मामला 1978 का था। इंदौर निवासी शाहबानो को उसके पति मोहम्मद खान ने तलाक दे दिया था। पांच बच्चों की मां 62 वर्षीय शाहबानो ने गुजारा भत्ता पाने के लिए कानून की शरण ली। मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा और उस पर सुनवाई हुई। उच्चतम न्यायालय तक पहुँचते मामले को सात साल बीत चुके थे। न्यायालय ने अपराध दंड संहिता की धारा 125 के अंतर्गत निर्णय दिया जो हर किसी पर लागू होता है चाहे वो किसी भी धर्म, जाति या संप्रदाय का हो। कोर्ट ने सुनवाई के बाद अपना फैसला सुनाते हुए शाहबानो के हक में फैसला देते हुए मोहम्मद खान को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया।
इसके बाद ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पुरजोर विरोध किया। शाहबानो के कानूनी तलाक भत्ते पर देशभर में राजनीतिक बवाल मच गया। राजीव गांधी सरकार ने मुस्लिम महिलाओं को मिलने वाले मुआवजे को निरस्त करते हुए एक साल के भीतर मुस्लिम महिला (तलाक में संरक्षण का अधिकार) अधिनियम, (1986) पारित कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पुरज़ोर विरोध किया था। माना जाता है कि राजीव गांधी ने ऐसा मुस्लिम धर्मगुरुओं के दबाव में आकर किया था। सरकार के शाहबानो को तलाक देने वाला पति मोहम्मद गुजारा भत्ता के दायित्व से मुक्त हो गया। ऐसे में शाहबानो जिसके भत्ते की मांग को सुप्रीम कोर्ट ने भी मंजूरी दे दी थी, उसे अपने गुजारे के लिए कुछ नहीं मिल सका।
आपको याद दिला दें आज से 33 साल पहले भी इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला सुनाया था और सरकार को संसद में इस फ़ैसले को बदलना पड़ा था। ये बात अलग है कि इस मामले का संबंध तलाक़ के क़ानूनी या ग़ैर-क़ानूनी पक्ष से नहीं बल्कि गुजारे भत्ते से था लेकिन यह कहा जा सकता है कि आजाद भारत में ये लड़ाई मुस्लिम महिलाओं के हक के लिए थी जो शाहबानो ने लड़ी थी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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