
केपी सिंह
भारतीय जनता पार्टी में सारी अटकलों को दरकिनार कर जगत प्रकाश नड्डा कार्यकारी अध्यक्ष घोषित कर दिये गये हैं जो अत्यन्त महत्वपूर्ण है क्योंकि धारणा यह बनाई गई थी कि केन्द्रीय गृहमंत्री की जिम्मेदारी संभाल चुके अमित शाह दिसम्बर में पार्टी के नये राष्ट्रीय अध्यक्ष के विधिवत चुनाव तक दोहरी जिम्मेदारी संभालते हुए संगठन की भी कमान अपने हाथ में रखेगे।
संगठन व्यक्तियों से ऊपर है इसलिए संगठन के नियमों में कोई भी अपवाद नहीं होना चाहिए इसे स्थापित करने में पर्दे के पीछे से भारतीय जनता पार्टी को संचालित करने वाले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने लालकृष्ण आडवानी के समय से ही प्रभावी दखल देने की शुरूआत कर दी थी। जिसके बेहतरीन परिणाम सामने आये हैं।
यह भी पढ़ें: कैसे होगा एक देश में एक चुनाव
संघ ने लालकृष्ण आडवानी को उनके न चाहते हुए भी जबरन प्रधानमंत्री पद की दौड़ से रिटायर कर नरेन्द्र मोदी का नाम अपने वीटो के प्रयोग से आगे बढ़ा दिया था। हालांकि उनके लिए शुरू में स्वीकृति बनाने में उसे काफी मशक्कत का सामना करना पड़ा था जबकि इसके पहले अटल युग में उनके व्यक्तित्व के सामने कई बार संघ बौना पड़ गया था। खासतौर से गोंविदाचार्य जैसे प्रतिभाशाली विचारक और दूरंदेशी रणनीतिकार की बली अटल जी ने अपने अहंम के खातिर चढ़ा दी और संघ बेबस बना रहा।
मोदी को पूरी ढ़ील देने के पीछे की नीति
नरेन्द्र मोदी का भी व्यक्तित्व जिस तरह विराट होता गया उसके मददेनजर कुछ प्रसंगों में लगने लगा था कि संघ एक बार फिर गौण हो रहा है। नरेन्द्र मोदी की पसंद के कारण संघ को अमित शाह को भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वीकारना पड़ा जबकि दोनों शीर्ष पद गुजरातियों को सौपने से पार्टी के तमाम लोग ऊपर से नीचे तक उद्वेलित थे। हालांकि अमित शाह बेहद निपुण अध्यक्ष साबित हुए लेकिन यह दूसरी बात है। शायद संघ की सोच शुरू में नरेन्द्र मोदी को फ्री हैण्ड करने की रही क्योंकि अपने एजेंडे को लागू करने की मोदी की क्षमता को लेकर संघ प्रभावित था।
फिर भी यूपी में मोदी की नहीं चली
इसके बावजूद संघ ने मोदी युग में भी अपने रिमोट कंट्रोल को अकाटय साबित करने का मौका नहीं गंवाया। पहली बार संघ ने मोदी पर अपना प्रभाव उस समय दिखाया जब उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री पद के लिए नाम तय करने पर मंथन चल रहा था। नरेन्द्र मोदी अमित शाह की जोड़ी योगी आदित्यनाथ के पक्ष में नहीं थी क्योंकि योगी की एकतरफा सोच के कारण उन्हें भाजपा की छवि धूमिल होने और पार्टी का भविष्य खतरे में पड़ने का अंदेशा नजर आ रहा था पर संघ ने इस मामले में भी वीटो का प्रयोग करके योगी का राज्याभिषेक करा दिया जबकि आधुनिक और उदार लोकतंत्र में कट्टर धर्माचार्यो को सत्ता हवाले करने की नजीर बनाना पूरे विश्व में राजनीतिक समुदाय को सशंकित कर गया था। लोकसभा चुनाव में प्रज्ञा ठाकुर की उम्मीदवारी भी मोदी की अनिच्छा की अनदेखी कर तय की गयी थी।
अमित शाह के मामले में दिखाया रिमोट कंट्रोल का असर
लेकिन संघ के नियंत्रण की सबसे बड़ी परीक्षा अमित शाह के मामले में हुई। मोदी ने सरकार और पार्टी में एकछत्र राज के लिए जब राजनाथ सिंह को बाईपास कर अमित शाह को सर्वाधिकार देने की पींगे बढ़ाना शुरू की तो संघ हरकत में आ गया।
जिन राजनाथ सिंह को केवल दो कैबिनेट समितियों में निपटा दिया गया था और अमित शाह को आठों कैबिनेट समितियों में जगह देकर उनके सामने पहाड़ सा खड़ा कर दिया था संघ की नाराजगी के बाद उन राजनाथ सिंह को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आनन फानन न केवल आधा दर्जन कैबिनेट समितियों में शामिल किया बल्कि लोकसभा में उपनेता का पद भी उन्हे देना पड़ा और सदन में अपने बगल की सीट उन्हें अलॉट करवानी पड़ी। ताकि राजनाथ सिंह की नंबर दो की हैसियत को लेकर सारे कयासों को विराम लग सके।
इसी क्रम में राजनीतिक प्रेक्षक भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के मामले में स्थितियों पर टकटकी लगाये हुए थे ताकि यह पता चल सके कि अमित शाह गृहमंत्री बनने के बाद भी संगठन को कार्यकारी अध्यक्ष बने रहकर अपनी मुटठी में रख सकेगें या संघ दखल देकर उनका यह मंसूबा विफल करेगा जिससे पार्टी पर एकाधिकार की धारणा का निराकरण हो सके। इसलिए अप्रत्याशित रूप से जेपी नड्डा की नियुक्ति कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर तपाक से कर दी गई।
संघ के आगे नतमस्तक हुए मोदी-शाह
यह अच्छी बात है कि मोदी और शाह महत्वाकांक्षी होने के बावजूद संघ के महत्व के आगे नतमस्तक हैं। जेपी नड्डा की कई खूबियां हैं। मूल रूप से उनका परिवार हिमाचल प्रदेश का है जबकि उनका जन्म बिहार में हुआ था। इस नाते बिहार की राजनीति पर भी उनकी अच्छी पकड़ है जो नीतिश कुमार के बगावती होने के मददेनजर इस राज्य में भाजपा की योजनाओं के विस्तार के लिए काम आएगी।
चुनाव के पहले जेपी नड्डा उत्तर प्रदेश में भाजपा के मुख्य प्रभारी बनाये गये थे। सपा और बसपा गठबंधन के जातिगत समीकरण को देखते हुए यह उत्तरदायित्व उनके लिए जोखिम भरा समझा जा रहा था लेकिन फिर भी भाजपा को यहां आशातीत सफलता मिली जिससे नड्डा के राजनीतिक कौशल को नई मान्यता मिली।
सामाजिक न्याय की प्रयोगशाला मानी जाने वाले देश के सबसे बड़े सूबे में जातिगत समीकरणों को छिन्न भिन्न करके हिन्दुत्व के आधार पर व्यापक एकजुटता का नक्शा गढ़ना टेढ़ी खीर था लेकिन फिर भी भाजपा ने इसमें कामयाबी हासिल की। इसके पीछे सपा बसपा के नेतृत्व की अवसरवादिता भी प्रमुख कारण रही जबकि भाजपा के लिए पहले दिन से ही वायरस की तरह नजर आने वाले इन दलों को आप्रासंगिक बना देना लक्ष्य था। इसके लिए मुलायम सिंह और उनके परिवार को ठंडे पौछे का लेप लगाकर शिथिल कर दिया गया नतीजतन वे भाजपा की सरकार से निजी काम कराने तक सीमित रह गये और भाजपा ने बहुत शातिराना ढंग से उनकी राजनीतिक जमीन खत्म कर दी। मायावती का भी उनकी स्वभावगत कमजोरियों के कारण भाजपा अपने लिए इस्तेमाल करने में सफल रही।
यह भी पढ़ें: क्या गुल खिलाएंगे मोदी के नौ रत्न!
यूपी के लिए नडडा क्यों है रामवाण
अब जबकि जेपी नड्डा ने भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष का दायित्व संभाला है उत्तर प्रदेश में एक दर्जन विधानसभा क्षेत्रों में उप चुनाव होने जा रहे हैं। जेपी नड्डा का उत्तर प्रदेश के कोने-कोने का अनुभव इन उप चुनावों में भाजपा के विजय रथ की रफ्तार बनाये रखने में काफी मददगार सिद्ध होगा। यह भी तय माना जा रहा है कि संगठन के विधिवत चुनाव के बाद जेपी नड्डा ही पार्टी के स्थायी राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिये जायेगे।
संघ को साबित करना है कि करिश्मा अमित शाह में नहीं बल्कि उस विचारधारा में है जिसे फैलाने के लिए उसके लाखों स्वयं सेवक अपना जीवन समर्पित करके काम कर रहे हैं। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पार्टी के राष्ट्रीय सदस्यता अभियान का प्रमुख बनाये जाने के पीछे के संकेत भी अनदेखे नहीं किये जा सकते।
मोदी शिवराज सिंह को अपना प्रतिद्वंद्वी मानते रहे हैं इसलिए उन्होंने या अमित शाह ने शिवराज को यह अहम दायित्व सौपने की पहल की होगी इस पर विश्वास नहीं किया जा सकता। इसके पीछे भी संघ का दिशा निर्देश है जिसको दिखाना है कि अमित शाह के बिना भी भाजपा के अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा तेजी से दौड़ता रहेगा।
व्यक्तिगत आचरण को लेकर भी क्या होगा संघ का आपरेशन
मार्क्सवाद मानता है कि नैतिक समाज के निर्माण के लिए व्यक्तिगत सुधार के अभियान जैसे चोंचलों की जरूरत नहीं है। उत्पादन संबंध बदलने यानी भौतिक स्थितियों और प्रक्रियाओं के आधार पर ऐसा समाज अपने आप निर्मित होना संभव है जिसमें हर व्यक्ति का आचरण नैतिक अनुशासन के अनुरूप हो जबकि संघ हम सुधरेंगे तो जग सुधरेगा की भावना में विश्वास रखता है। इसलिए सत्ता उसका साध्य नहीं साधन होना चाहिए।
मोदी का पहला चरण सत्ता में बने रहने की स्थितियों को तैयार करने में गुजरा लेकिन दूसरे चरण में व्यक्ति सुधार हो इसे संघ को देखना होगा। उत्तर प्रदेश में सुनील बंसल जैसे चेहरे से संघ की पहचान होती है जिसे कतई उपयुक्त नहीं माना जा सकता।
संघ के स्वयं सेवक होकर भी भाजपा के ज्यादातर सांसद, विधायक, मंत्री आचरण के मामले में कोई उदाहरण प्रस्तुत नहीं कर पाये या संघ के पास कोई ऐसी कार्ययोजना है जिससे लोग महसूस कर सकें कि हम बदलेंगे तो जग बदलेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख में उनके निजी विचार हैं)