Wednesday - 13 November 2024 - 4:52 PM

सियासी आंच में सुलगता बंगाल और ममता का हठयोग…

कृष्णमोहन झा

हॉल ही के लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस को जो शर्मनाक हार झेलनी पड़ी है, उसके बाद पार्टी की मुखिया व मुख्यमंत्री ममता बनर्जी केंद्र की सरकार से पूरी तरह टकराव के मूड में आ गई है।

केंद्र सरकार का विरोध करने के लिए वे किसी भी हद तक जाने को तैयार दिख रही है। उनकी मंशा केंद्र सरकार का विरोध नहीं ,बल्कि उसे नीचा दिखाने की ज्यादा लग रही है। पश्चिम बंगाल में भाजपा द्वारा लोकसभा की 42 में से 18 सीटें जीतने के बाद तो वह इतना बौखला गई है कि राज्य में भड़की राजनीतिक हिंसा पर काबू पाने की संवैधानिक जिम्मेदारी से भी मुंह मोड़ रही है।

लोकसभा चुनाव के दौरान जब उनके कार्यकर्ताओं ने भाजपा के कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया था, तब भी उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं को संयम बरतने की सलाह देने की आवश्यकता महसूस नहीं की। लोकसभा चुनाव के बाद तो बंगाल में ऐसी राजनीतिक हिंसा भड़क उठी है कि जिस पर काबू पाना आसान नहीं लग रहा है।

ममता बनर्जी ने इतने जान माल के नुकसान के बाद यह स्वीकार तो किया कि राज्य में हिंसा हो रही है, लेकिन उन्होंने यह भी दावा किया किया कि हिंसा में तणमूल कांग्रेस के 8 कार्यकर्ताओं की जान गई है जबकि भाजपा के सिर्फ दो कार्यकर्ता इस हिंसा में मारे गए है।

दरअसल ममता यह सिद्ध करना चाहती है कि भाजपा कार्यकर्ता ही उनके कार्यकर्ताओं को निशाना बना रहे है और राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति को बिगाड़ने में भी भाजपा का ही हाथ है। ममता बनर्जी राज्यपाल पर भी टिप्पणी करने से परहेज नहीं कर रही है। उन्होंने कहा कि हर संवैधानिक पद की एक सीमा होती है। राज्यपाल को भी उस सीमा में रहकर ही अपनी जिम्मेदारी निर्वहन करना चाहिए।

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के रोड शो के दौरान उपद्रवियों ने देश के प्रसिद्द समाज सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर की जिस प्रतिमा को तोड़ दिया था ,उस स्थान पर नई प्रतिमा को स्थापित करने जिस तरह की तत्परता ममता ने दिखाई है ,उसके पीछे उनकी मंशा यही थी केंद्र सरकार उसका श्रेय न ले पाए। ममता बनर्जी ने मूर्ति स्थापना के बाद बाकायदा रोड शो कर अपनी शक्ति का प्रदर्शन भी किया। इस अवसर पर भी वह भाजपा एवं पीएम मोदी पर निशाना लगाने से नहीं चुकी।

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गौरतलब है कि अमित शाह के रोड शो के दौरान ईश्वर चंद्र विद्यासागर की मूर्ति तोड़े जाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी कि मूर्ति जहां स्थापित थी उस स्थान पर केंद्र सरकार अष्ट धातु की मूर्ति स्तापित करेगी ,लेकिन ममता ने पीएम मोदी से आगे निकलने की कोशिश में पहले ही इस काम को अंजाम दे दिया और उसका श्रेय लेने से भी नहीं चूकी। इस दौरान उन्होंने भाजपा पर जमकर हमला भी बोला।

दरअसल पीएम मोदी ने लोकसभा चुनाव के दौरान पश्चिम बंगाल में आयोजित एक रैली में जब यह कहकर सबको चौका दिया था कि तृणमूल के 40 विधायक उनके सम्पर्क में है तभी से ममता गुस्सा निकाल रही है। परन्तु विरोध के नाम पर उन्होंने कई बार मर्यादा का उल्ल्घन करने से भी परहेज नहीं किया।

इसमें भी कोई संदेह नहीं है कि वे केंद्र सरकार से पूरी तरह टकराव के मूड आ चुकी है ,लेकिन वह यह भूल गई कि विरोध करने का तरीका हमेशा सही नहीं होता। उन्होंने न तो पीएम मोदी के शपथ ग्रहण समरोह में भाग लिया और न ही नीति आयोग की बैठक में शिरकत की।

यह आश्चर्य का विषय है कि राज्य में बढ़ती हिंसक घटनाओं के बाद भी ममता बनर्जी चिंतित नहीं है, उलटे वह दावा कर रही है कि राज्य में कानून व्यवस्था पूरी तरह नियंत्रण में है। उन्होंने आरोप कि भाजपा उनकी सरकार गिराने की साजिश रच रही है।

ममता मानने को ही तैयार नहीं है कि तृणमूल कार्यकर्ताओं द्वारा भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्याएं की जा रही है, क्योंकि वह राज्य में अपनी पार्टी की इस तरह की हार को पचा नहीं पा रहे है। ममता बनर्जी ने भी कभी नहीं सोचा था कि वे भाजपा के राज्य में बढ़ते जनाधार को को रोकने में सफल नहीं हो पाएगी।

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उन्होंने तो लोकसभा चुनाव के दौरान मोदी को पीएम तक मानने से इंकार कर दिया था। तब उन्हें यह अहसास नहीं था कि पीएम मोदी की करिश्माई गिरफ्त में उनका अपना राज्य भी आ चुका है और राज्य की जनता भी उन्हें पीएम की कुर्सी पर बैठे देखना चाहती है।

इधर प्रचंड बहुमत के साथ नरेंद्र मोदी के दुबारा प्रधानमंत्री बनने के बाद तो यह आशा की जा रही थी ममता सारी चुनावी कटुता भुलाकर केंद्र के साथ सौहाद्रपूर्ण संबंधों पर गंभीरता से विचार करेगी, परन्तु उन्होंने तो शपथ ग्रहण समारोह में शिरकत न कर सामान्य शिष्टाचार भी नहीं निभाया।

ममता बनर्जी राज्य में अपनी हार के कारण को खोजने के बजाय भाजपा पर निशाना साधने में ज्यादा समय जाया कर रही है। वे आए दिन अपने भाषणों में कहती है कि किसी को डरने की जरुरत नहीं है। भाजपा के लोगो ने जिस तरह ईवीएम पर कब्ज़ा किया था, उतनी ही तेजी से वे यहाँ से भाग जाएंगे।

ममता शायद इस बात को जानबूझकर नजरअंदाज कर देना चाहती है कि भाजपा के प्रति राज्य की जनता का आकर्षण नहीं बड़ा है, जबकि भाजपा पिछले पांच सालों से राज्य में अपना जनाधार बढ़ाने के लिए मेहनत कर रही है।

कार्यकर्ता दिन रात पार्टी को आगे बढ़ाने काम कर रहे है। उनका उत्साह बढ़ाने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने बंगाल में कई रैलियां की। इसका लाभ तो उन्हें मिलना ही था। 2014 में मात्र एक सीट पर विजयी हुई भाजपा ने 2019 में 42 में से 18 सीटे जीतकर इतिहास रच दिया।

अब ममता को यही डर है कि भाजपा का जनाधार राज्य में इसी तरह बढ़ता रहा तो वह एक दिन राज्य की सत्ता पर भी काबिज हो जाएगी। भाजपा महासचिव एवं राज्य के प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय का तो कहना है कि हम तो 2021 की तैयारी कर रहे थे, लेकिन ऐसा लगता है कि ममता सरकार उसके पहले ही गिर जाएगी। यदि ऐसा होता है तो इसके लिए ममता स्वयं जिम्मेदार होगी।

पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव के बाद बढ़ती राजनीतिक हिंसा के बाद केंद्र सरकार ने इस पर नियंत्रण के लिए एक एडवायजरी जारी की थी, जिस पर राज्य के मुख्य सचिव ने यह जवाब भेजा है कि कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा की जा रही हिंसा पर नियंत्रण पाने में अधिकारियों ने कोई लापरवाही नहीं की है।

जाहिर सी बात है कि ममता सरकार छोटी मोटी घटनाएं बताने का प्रयास कर रही है, लेकिन हकीकत यह है कि इस हिंसा में जान और माल का नुकसान हो रहा रहा उसे रोकने में ममता सरकार नाकाफी कदम उठा रही है। राज्य की प्रशासनिक मशीनरी भी सरकार का रुख देखकर ही अपनी जिम्मेदारी निभा रही है।

इस कारण ही स्थिति बिगड़ती जा रही है। इससे अब यह तो तय लग रहा है कि राज्य में जारी राजनीतिक हिंसा के जल्दी थमने के आसार नहीं है। इसका खामियाजा राज्य की जनता को भी भुगतना होगा। इस स्थिति में राज्य की जनता का भरोसा ममता सरकार से उठकर अपनी और बढ़ाने के लिए भाजपा कोई कसर नहीं छोड़ेगी।

इसलिए ममता को भी अब नकारात्मक राजनीति छोड़कर राज्य की भलाई के लिए जो योजनाएं चलाई है उस पर पर ध्यान देना होगा। राज्य में जय श्रीराम की गूंज को दबाने का जो वह प्रयास कर रही है, उसे उनकी पार्टी का कोई भला नहीं होने वाला है। तुष्टिकरण की राजनीति का उन्हें इतना ही फायदा मिलना होता तो भाजपा का पिछले पांच सालों में जनाधार बढ़ा नहीं होता।

ममता बनर्जी को यह तय करना होगा कि आखिर किस कारण से भाजपा के पैर राज्य में मजबूत होते जा रहे है। उन्हें यह भी सोचना होगा कि वे केवल दंडात्मक राजनीति का सहारा लेकर अपनी सरकार को निरापद नहीं बना सकती है।

(लेखक डिज़ियाना मीडिया समूह के राजनैतिक संपादक है)

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