डा. रवीन्द्र अरजरिया
उत्तर प्रदेश के अलीगढ में हुई मासूम की निर्मम हत्या से पूरा देश आक्रोशित हो उठा। चारों ओर से निंदा की जाने लगी। अपराधियों को कठोर दण्ड दिये जाने की मांग का स्वर तीव्र होने लगा। योगी सरकार का पूर्ण नियंत्रण का दावा खोखला साबित हुआ। जांच के लिए एसआईटी का गठन, दो आरोपियों की गिरफ्तारी और उच्चस्तरीय वक्तव्यों का क्रम भी चल निकला।
आरोपियों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून और बाल अपराधों से जुडा पाक्स एक्ट लगाने की तैयारी की जाने लगी। पीडित परिवारजन दुष्कर्म होने, तेजाब से जलाने जैसे अनेक आरोप लगा रहे हैं किन्तु पुलिस उन्हें सिरे से खारिज कर रही है। प्रदेश के मंत्री सूर्य प्रताप शाही तो इसे सामान्य घटना मानकर ऐसी घटनायें तो होती रहीं हैं, तक कह गये। विभिन्न क्षेत्रों के नामची लोगों की कडी प्रतिक्रियायें सामने आ रहीं हैं। मायानगरी ने तो चार कदम आगे बढकर घटना की तीव्र निंदा की है।
इलैक्ट्रानिक मीडिया और प्रिंट मीडिया ने भी प्रदेश के व्यवस्था तंत्र को जमकर कोसा है। सोशल मीडिया पर भी पीड़ा भरे उदगार व्यक्त करने वालों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। कुछ राजनैतिक दलों ने तो इस मुद्दे को जातिगत वर्गीकरण के आइने से भी देखना शुरू कर दिया है। विचार मंथन की गति ट्रेन से कहीं अधिक तेज थी। तभी सामने की सीट पर बैग रखकर बैठने वाले सज्जन के आश्चर्य भरे संबोधन ने हमें चौंका दिया। चिंतन लोक से वापिस आये, तो सामने पाया अपने पुराने मित्र अनिल सिंह वीरू को।
लखनऊ विश्वविद्यालय का छात्र जीवन अतीत की स्मृतियों में एक बार फिर जीवित हो उठा। हबीबुल्लाह छात्रावास में हमारे कमरे से चार कदम दूरी पर ही वीरू का कमरा था। रविवार की शाम को होने वाला मैस का अवकाश, सुबह के नाश्ते का इंतजाम, हमारे कमरे में रखे खाद्य पदार्थों पर जूनियर होने के नाते उसका हाथ साफ करना, सब कुछ चलचित्र की तरह चलने लगा। लम्बे अंतराल के बाद हमारी मुलाकात हो रही थी। उस समय भी वह हमें सर ही कहते थे और आज भी उन्होंने उसी संबोधन का प्रयोग किया। कहां खो गये सर, के वाक्य के साथ उन्होंने हमें वर्तमान का आभास कराया।
वीरू हमारे लिये भले ही आज भी वीरू हों परन्तु वह समाजवादी पार्टी में अनिल सिंह के नाम से एक कद्दावर नेता की पहचान बना चुके हैं। कुशलक्षेम पूछने-बताने के बाद पुराने मित्रों पर चर्चा केन्द्रित होती उसके पहले ही हमने उनसे उन्हें अलीगढ की दुखःद घटना की ओर आकर्षित किया। भाजपा सरकार की नाकामियों की आंकडों सहित व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि यह व्यवस्था तंत्र की खामी है जिसका खामियाजा आम आवाम को भुगतना पड़ रहा है। प्रदेश में कानून का भय समाप्त हो गया है।
सरकार के मंत्री दूसरों के दर्द को नजरंदाज करते हुए अपराधों के कम होने का ढि़ंढोरा पीटते फिर रहे हैं। उनके भाजपा विरोधी प्रलाप को बीच में ही रोकते हुए हमने संवैधानिक व्यवस्था के लचीलेपन को रेखांकित किया, तो उन्होंने तानाशाह के रूप में स्थापित हुए जवाहरलाल नेहरू द्वारा संविधान निर्माण की प्रक्रिया को अपहरित करने का बात कही। संविधान का निर्माण लंदन में होना, अंबेडकर द्वारा मना करने के बाद भी अनेक धाराओं को नेहरू द्वारा जुड़वाना, हिंदी राष्ट्र भाषा वाले देश का संविधान अंग्रेजी में लिखा जाना, सांस्कृतिक विभेद के आधार पर पृथक-पृथक अधिकारों का बटवारा, खास लोगों को लाभ देने हेतु व्यवस्था करने जैसे अनेक कारणों की विवेचना करते हुए उन्होंने कहा कि देश की वर्तमान दुर्दशा के लिए केवल और केवल कांग्रेस ही जिम्मेदार है।
भाजपा तो विकल्प के रूप में अपने को प्रस्तुत करने में सफल हो गई है वरना वह भी समाजवाद लाने की दिशा में धरातल पर कुछ भी नहीं कर रही है। लोकसभा के चुनाव परिणामों के आइने में हमने उन्हें जनादेश का दिग्दर्शन कराते हुए बसपा के साथ सिद्धान्तविहीन सपा के गठबंधन पर उनसे जबाब मांगा। पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव की लाइन पर ही आगे बढ़ते हुए उन्होंने कहा कि सर, यह सब तो प्रयोग हैं, चलते रहते हैं। इन्हीं प्रयोगों के आधार पर तो हम सीख लेकर भावी रणनीतियां तय करते हैं। जो क्षेत्रीय पार्टियां जातिगत तुष्टीकरण की डगर पर चल रहीं है उनका अस्तित्वहीन होना लगभग तय है।
बसपा सहित बहुत सारे ऐसे ही स्वयंघाती दल हैं, जो स्वार्थ सिद्धि और सत्ता लोलुपता के वास्तविक लक्ष्य हेतु समाज को गुमराह कर रहे हैं। इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा नहीं बल्कि मोदी की जीत हुई है। कठोर निर्णय की परिणति को व्यापक प्रचार के माध्यम से सुनियोजित ढंग से समाज के सामने परोसा गया। केन्द्र में पुनः सत्तासीन होने के पीछे यही नीतियां कारगर हुईं परन्तु उत्तर प्रदेश सरकार की ढुलमुल कार्यशैली, अस्पष्ट दृष्टिकोण और लालफीताशाही का वर्चस्व ही अपराधियों के हौसले बुलंद कर रहा है।
इसी के कारण मासूम की जघन्य हत्या जैसे दुखःद कारक सामने आये हैं। अब गिरफ्तार किये गये आरोपियों के पक्ष में वकीलों की फौज खडी होकर उसे निर्दोष साबित करने में कानूनी दाव-पेचों का खेल खेलेगी। मानवीयता को तिलांजलि देकर पैसों का कारोबार करने वाले ऐसे ही अवसरों की तलाश में रहते हैं। सामाजिक पतन का कारण है व्यवस्था तंत्र की विकृतियां, जिन्हें दूर किये बिना उज्जवल भविष्य की कल्पना करना तो मृगमारीचिका के पीछे भागने जैसा ही होगा।
वर्तमान समय में संविधान की पुनर्समीक्षा आवश्यक ही नहीं अत्यावश्यक है। जिसके बिना न तो विकास के मापदण्ड तय किये जा सकेंगे और न ही वास्तविक समाजवाद की स्थापना की जा सकेगी। बातचीत चल ही रही थी कि तभी वेटर ने कूपे में आकर शीतल पेय के साथ स्वल्पाहार हेतु सामग्री सजाना शुरू कर दी। विश्लेषण की निरंतरता में व्यवधान उत्पन्न हुआ। तब तक हमें वीरू के माध्यम से सपा की आंतरिक सोच की बानगी मिल चुकी थी। सो इस विषय पर फिर चर्चा करने के आश्वासन के साथ शीतल पेय और स्वल्पाहार का लुत्फ लेने लगे।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार है यह लेख उनका निजि विचार है)