प्रीति सिंह
नेहरू की कश्मीर नीति को ले कर भाजपा उन्हें लगातार कटघरे में खड़ा करती है , ख़ास तौर पर संविधान की धारा 370 को लेकर संघ परिवार हमेशा ही नेहरू पर आक्रामक रहता है। लेकिन हकीकत ये है की धारा 370 नेहरू की नहीं बल्कि सरदार पटेल की सोच थी। विडम्बना यह है कि आरएसएस सरदार पटेल को तो अपना बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ता लेकिन नेहरू पर हमलावर रहता है।
आज पं. जवाहरलाल नेहरू की पुण्यतिथि पर जब प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें श्रद्धांजलि दी तब भी ये सवाल उठा कि पूरे चुनाव भर जिस नेहरू को ले कर मोदी ने कांग्रेस पर हमले किये , आखिर उन्हके प्रति इतना सम्मान क्यों ?
इस बात का सीधा जवाब है – देश के पूर्व प्रधानमंत्री को वर्तमान प्रधानमंत्री द्वारा श्रद्धांजलि देना शिष्टाचार है। और मोदी इसे इसी रूप में ले रहे हैं। मगर उनकी पार्टी और मातृ संस्था नेहरू पर हमले करने में कभी पीछे नहीं रहेगी। भले ही उसे गलत तथ्य सामने रखने पड़े।
विरोधी भी रहे नेहरू के प्रशंसक
हालांकि अटल विहारी बाजपेयी सरीखे नेता हमेशा नेहरू के प्रति अपनी श्रद्धा दिखते रहे , मगर उनकी पार्टी नहीं। देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू की शख्सियत का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है जब उनका निधन हुआ था तो पूर्व प्रधानमंत्री व बीजेपी नेता स्व. अटल बिहारी बाजपेयी ने कहा था कि भारत मां ने अपना सबसे प्यारा लाल खो दिया है, सूरज ढल चुका है, अब तीन मूर्ती मार्ग (तत्कालीन प्रधानमंत्री आवास) तरह का आदमी कभी नहीं आएगा।
नेहरू की शख्सियत का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है जिस नेताजी सुभाष चंद्र बोस से उनका वैचारिक मतभेद जगजाहिर था , उन्हीं बोस ने जब अपनी आजाद हिंद फौज की चार ब्रिगेडों की स्थापना की तो उसमें से एक ब्रिगेड का नाम नेहरू के नाम पर था। इसके अलावा जब नेहरू की पत्नी कमला नेहरू टीबी की बीमारी से जूझ रही थीं और अंग्रेजों ने नेहरू को जेल से रिहा नहीं किया तब बोस ही वह शख्स थे जिन्होंने स्विट्जरलैंड में कमला नेहरू का इलाज कराया।
धारा 370 को लेकर जनसंघ, भाजपा साधती रही है नेहरू पर निशाना
कश्मीर समस्या की बात करें तो आजादी के बाद ज्वलंत तरीके से उठा यह पहला मुद्दा था। जब भी कश्मीर की स्थिति का जिक्र होता है जो वहां के हालात का ठीकरा पंडित जवाहरलाल नेहरू के सिर पर फोड़ा जाता है। जनसंघ से लेकर बीजेपी धारा 370 का जिम्मेदार नेहरू को बताती रही है। बहुत कम लोगों को पता है कि भारतीय धारा 370 जोडऩे का बड़ा काम सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया था।
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उस समय पूरी कांग्रेस पार्टी कश्मीर को विशेष दर्जा देने के सख्त खिलाफ थी, लेकिन जब पंडित नेहरू अमेरिका में थे, तब पटेल ने पार्टी को कश्मीर के हालात समझाया और संविधान सभा में धारा 370 को स्वीकृत कराया। नेहरू ने पटेल की मृत्यु के बाद भी हमेशा उन्हें काम का श्रेय दिया।
धारा 377 की वजह से नेहरू और पटेल की दोस्ती में आई थी दरार
यहां यह जानना भी जरूरी है कि इस आर्टिकल की वजह से ही पंडित जवाहर लाल नेहरु और लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की दोस्ती में दरार आ गई थी। सिर्फ इतना ही नहीं 60 के दशक में खुद पंडित नेहरु ने कहा था इसे हटाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और जल्द ही प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी।
नेहरु ने आर्टिकल 370 को एक ‘अस्थायी प्रबंध’ के तौर पर करार दिया था। 27 नवंबर 1963 को उन्होंने लोकसभा में बयान दिया था कि धारा 370 को खत्म करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। जल्द ही इसे पूरी तरह से खत्म कर दिया जाएगा। लेकिन 27 मई 1964 को उनका निधन हो गया। नेहरु की मौत के बाद कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने गुलजारी लाल नंदा ने चार दिसंबर 1964 को लोकसभा में भाषण दिया था जिसमें उन्होंने कहा था कि आप आर्टिकल 370 को रखें या इसे हटा दें, लेकिन यह अपना असर दिखा चुका है।
सरदार नहीं चाहते थे कि नेहरू की अनुपस्थिति में ऐसा कुछ हो जिससे नेहरू को नीचा देखना पड़े। इसलिए नेहरू की अनुपस्थिति में सरदार ने कांग्रेस पार्टी को अपना रवैया बदलने के लिए समझाने का कार्य हाथ में लिया। यह कार्य उन्होंने इतनी सफलता से किया कि संविधान-सभा में इस अनुच्छेद की बहुत चर्चा नहीं हुई और न इसका विरोध हुआ। धारा 370 को संविधान में जुड़वाने के बाद सरदार ने नेहरू को 3 नवंबर 1949 को पत्र लिखकर इसके बारे में सूचित किया- ‘काफी लंबी चर्चा के बाद में पार्टी (कांग्रेस) को सारे परिवर्तन स्वीकार करने के लिए समझा सका।
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नेहरूजी ने हमेशा इस कार्य के लिए सरदार पटेल को उचित श्रेय दिया। सरदार पटेल की मृत्यु के बाद जब श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने धारा 370 खत्म कराने के लिए आंदोलन छेड़ा, तब 25 जुलाई 1952 को मुख्यमंत्रियों को लिखे पत्र में नेहरू जी ने पटेल के कार्य की याद दिलाई, ‘यह मामला 1949 में हमारे सामने तब आया था जब भारत के संविधान को अंतिम रूप दिया जा रहा था। सरदार पटेल तब इस मामले को अपने हाथ में लिया, उन्होंने हमारे संविधान में जम्मू और कश्मीर राज्य को विशेष, लेकिन ट्रांजिशनल दर्जा दिया। यह संविधान में धारा 370 के रूप में शामिल है।
लेकिन प्रचार तंत्र के इस युग में क्या आम जनता तथ्यों पर यकीन करती है ? इसका जवाब भी साफ़ है – नहीं। वह तो बस गढे हुए संदेशो को ही सच मान लेती है।