Friday - 8 November 2024 - 5:56 PM

बहुआयामी सोच के कारण हुई मोदी की वापसी

डा. रवीन्द्र अरजरिया

विश्व के सबसे बडे लोकतंत्र में लोकप्रियता की परिभाषायें बदलने लगीं हैं। जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद, वंशवाद, वर्गवाद जैसी मानसिकता ने अस्तत्वहीनता की ओर कदम बढाना शुरू कर दिया है। संकुचित दायरे में कैद रहने वाली विचारधारा ने अब अपनी आजादी का रास्ता खोज लिया है। राष्ट्रवादी सोच के साथ विकास के बढते मापदण्डों ने नये कीर्तिमान गढने की परम्परा स्थापित कर दी है।

चुनावी परिणामों की घोषणा के मध्य मुक्ताकाशी मंच से देश की चहुमुखी प्रगति का संकल्प लेने वाले नरेन्द्र मोदी ने भविष्य का खाका, विश्व के सामने जिस ढंग से प्रस्तुत किया था, उसने आगामी कार्यकाल की शैली के स्पष्ट संकेत मिल जाते हैं।

मोदी के नेतृत्व में भाजपा सहित एनडीए की जीत के प्रति सभी आशावान थे परन्तु इतने व्यापक समर्थन की कल्पना नहीं की जा रही थी। विद्वानों के ज्ञान से उपजने वाले विश्लेषणों का निरंतर प्रकाशन और प्रसारण हो रहा है। हम स्वयं भी अनेक बिन्दुओं को अपने अनुभवों के आधार पर रेखांकित कर चुके हैं परन्तु हमारे मन में आम आवाम का दृष्टिकोण जानने की जिग्यासा निरंतर कौंध रही थी।

विभिन्न संस्कृतियों और संस्कारों से जुडे लोगों की अनामंत्रित उपस्थिति रेलवे स्टेशन पर होती है। सो हम पहुंच गये नई दिल्ली रेलवे स्टेशन। वहां क्षेत्र विशेष में निवास करने वालों के समूह अपनी-अपनी लोकभाषा में चर्चा करने में तल्लीन थे।

ट्रेन की प्रतीक्षा करने वालों के मध्य चुनावी परिणामों और देश के भविष्य की विवेचना की जा रही थी। हमने भी एक यात्री की तरह ही उन समूहों में पहुंच बनाई। एक समूह में कुछ देर उनकी सुनने के बाद सक्रिय भागीदारी दर्ज करते हुए अपने प्रश्न उछाले। महाराष्ट्र के पूना में निवास करने वाले इंजीनियर दीपक गायके ने बताया कि व्यवसायगत कारणों से हमें अकसर विदेश प्रवास पर रहना पडता है। भारत की पांच साल पहले वाली छवि और वर्तमान छवि में जमीन आसमान का अंतर है।

विदेशों में अब हमें विशेषज्ञ के रूप में देखा जाता है जबकि पहले काम या दाम मांगने वाले का ठप्पा लगा था। इस सम्मान के पीछे देश के नेतृत्व की कडी मेहनत है, जिसका हम सबने मिलकर आभार व्यक्त ही नहीं किया बल्कि स्वर्णिम कल की कल्पना भी कर ली है। दीपक की बात को वहां खडे महाराष्ट्र के सभी लोगों ने समर्थन दिया। अब हमने दूसरे समूह की ओर रुख किया। उत्तरप्रदेश के लोग चाय की चुस्कियों के साथ अपने ज्ञान के आधार पर राजनैतिक पंडितों की तरह विचार विमर्श कर रहे थे। उनके साथ आत्मीयता स्थापित करके हमने यहां भी परिणामों को प्रभावित करने सवालों का जबाब चाहा।

सीतापुर क्षेत्र में शिक्षण संस्थाओं का संचालन करने वाले श्रवण कुमार ने पुलवामा हमले और उसके बाद के घटना क्रम पर मोदी की कठोर कार्य प्रणाली का यशगान करते हुए कहा कि मुम्बई ब्लास्ट के दौरान कसाब की गिरफ्तारी के वक्त अगर मोदी प्रधानमंत्री होते तो पाकिस्तान को तभी सबक मिल गया होता। घात पर कडे प्रतिघात के अलावा, विश्वमंच पर भी पडोसी की ऐसी घेराबंदी होती, कि उसे भी नानी याद आ जाती। सम्मान के साथ हम दो सूखी रोटी में भी गुजारा कर लेंगे परन्तु अपमान की थाली के व्यंजन नालायक लोगों को ही मुबारक हों। श्रवण कुमार के स्वर में आक्रोश की स्पष्ट झलक मिल रहीं थी। कुछ ही दूरी पर एक और समूह बातों में व्यस्त था।

मध्यप्रदेश में महाराज छत्रसाल की नगरी के पास उर्दमऊ गांव के किसान राजेन्द्र दीक्षित कह रहे थे कि हमारे जिले में तो पंडित कपडा भण्डार भी है और गुप्ता भोजनालय भी। सिंहल शू स्टोर भी है और खालसा मशीनरीज भी। अहिरवार कोचिंग भी है और केएनजी फर्नीचर भी। कहां बची हैं जातियां। यह सब बेकार की बातें हैं। चुनाव के दौरान ही स्वार्थी लोग जाति का सहारा लेकर जहर बोते हैं और अपना उल्लू सीधा करके चले जाते हैं। इस बार तो हमने किसी सांसद को नहीं बल्कि प्रधानमंत्री को वोट दिया है। हमारे गांव में सुविधाओं का विस्तार हुआ है और हमें भी अनेक योजनाओं का लाभ मिला है।

कुछ ही दूरी पर गुजराती भाइयों का जमघट लगा था। उस समूह का नेतृत्व कर रहे दाहोत में फर्नीचर का काम करने वाले कुशल कारीगर धर्मेन्द्र हरीलाल पंचाल। उन्होंने बताया कि हमारी धरती के संस्कार ही राष्ट्रीयता को पोषित करने वाले हैं। महात्मा गांधी से लेकर नरेन्द्र मोदी तक ने यह बात स्थापित कर दी है। जन्मजात गुजराती हमेशा से ही सरलता, स्पष्टता और सार्थकता का पर्याय रहा है। हम सम्मान देना और लेना, दौनों जानते हैं।

देश की कीमत पर कभी समझौता नहीं करते। कडी मेहनत की दम पर सफलता हासिल करते हैं। हम लोगों ने तो पूरे देश में रहने वाले गुजराती भाइयों से व्यक्तिगत सम्पर्क करके उन्हें देशहित में मतदान करने और करवाने हेतु प्रेरित किया था। इस मिशन में हमारे मुस्लिम भाइयों ने भी बढ चढकर हिस्सा लिया था।

वहीं, जम्मू के मुट्ठी गांव निवासी राजेश बाचपेई भी खडे थे। उन्होंने तो घाटी की तस्वीर खींचते हुए कहा कि वहां पर चन्द लोगों ने ही जहर फैला रखा है। उनका विषवमन भी कट्टरपंथी युवाओं को गुमराह कर रहा है। सरकारें भी उन अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा में करोडों रुपये खर्च कर रही है। यह रुपया देश के मेहनतकश लोगों द्वारा टैक्स के रूप में सरकार को दिया जाता है। वहां भी मोदी को एकमात्र राष्ट्रवादी नेता के रूप में स्वीकारोक्ति मिली है।

तभी कोलकता के बेनियापुकुर निवासी अमरनाथ ने राजेश की बात को आगे बढाते हुए कहा कि हम ने पहली बार मतदान किया है। सोचना पडा ही नहीं। हमने जाति के आधार पर नहीं बल्कि राष्ट्र के आधार पर, स्टार्टअप के आधार पर, अपनी उच्च शिक्षा हेतु केन्द्र से मिली सुविधाओं के आधार पर वोट दिया है। हमारे सभी साथियों ने भी ऐसा ही किया है। वहां तो तृणमूल का जंगलराज कायम है। अव निश्चय ही उससे छुटकारा मिलेगा। वास्तविक गणतंत्र की स्थापना और एक देश-एक कानून की परिणति ही हमारी कल्पना में उपजा एक स्वर्णम चित्र है।

चर्चा चल ही रही थी कि तभी एक ट्रेन ने जोरदार हार्न बजाते हुए प्लेटफार्म पर अपनी आमद दर्ज की। तब तक हमारे मन की जिग्यासा को समाधान मिल चुका था। वास्तविकता में बहुआयामी सोच के कारण हुई मोदी की सशक्त पुनरावृत्ति। इस बार बस इतना ही।

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