सैय्यद मोहम्मद अब्बास
लखनऊ। चुनाव खत्म हो गया है। लगभग दो महीने से चला रहा सियासी घमासान कल यानी गुरुवार को मोदी की जीत के साथ खत्म हो गया है। मोदी को जनता ने प्रचंड बहुमत दिया। इस तरह से इस चुनाव में न तो राहुल गांधी का भाषण चला और न ही प्रियंका गांधी का जादू। दूसरी ओर यूपी में मोदी मैजीक की धमक भी खूब देखने को मिली।
उत्तर प्रदेश में भी बीजेपी ने दमदार प्रदर्शन करते हुए 62 सीटों पर कब्जा किया है। उनकी इस जीत से बुआ-बबुआ की दोस्ती भी अब खतरे में पड़ गई है। वहीं चुनाव से पूर्व बड़े-बड़े दावें करने वाले अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव की भी इस चुनाव में हवा निकल गई है। आलम तो यह उनकी नई पार्टी एक सीट जीतने में भी नाकाम रही है और कई सीटों पर उनके प्रत्याशियों की जमानत तक जब्त हो गई है। पूरे चुनाव में चाचा अपने भतीजे को रडार पर लेते रहे हैं लेकिन परिणाम आने के बाद उनकी नई पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का वजूद अब खतरे में पड़ गया है।
इसके साथ ही शिवपाल यादव का राजनीतिक भविष्य भी दांव पर लग गया है। उनकी पार्टी जमीन पर अपना वर्चस्व बनाने में फेल हो गई है। राजनीतिक के जानकारों की माने तो समाजवीदी पार्टी के संस्थापक सदस्य शिवपाल यादव और उनके भतीजे अखिलेश यादव से तल्ख रिश्तों ने उनका बेड़ा गर्क कर दिया है।
शिवपाल यादव के प्रत्याशियों को जनता ने नकारा
अखिलेश से किनारा कर चुके शिवपाल यादव इस चुनाव के सहारे अपने सियासी कद को बढ़ाना चाहते थे लेकिन हुआ इसके उलट। आलम तो यह रहा कि उनकी पार्टी का कोई भी प्रत्याशी ही नहीं बल्कि शिवपाल यादव खुद भी संसद तक पहुंचने में नाकाम रहे।
उनका चुनाव चिन्ह चॉबी है लेकिन उससे ताले नहीं खुलते हैं। ये बात इस चुनाव में साबित हो गई है। उनके मुकाबले नोटा ने उनसे अच्छा प्रदर्शन किया है।
नोटा को भी शिवपाल की पार्टी से ज्यादा वोट मिले हैं
उदाहरण के लिए सहारनपुर से प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के टिकट पर भाग्य आजमाने वाले मोहम्मद ओवैस को शुरुआती दौर में केवल 1217 वोट मिले थे जबकि नोटा को 2357 मिले थे। इससे एक बात तो साफ हो गई शिवपाल यादव ने जो सपने दिखाये थे उसे जनता ने नकार दिया है। उनकी यह हालत लगभग यूपी के हर उस लोकसभा सीट पर रही, जहां उन्होंने अपने उम्मीदवार उतारे थे।
उनके प्रत्याशियों को बेहद कम वोट मिले उससे ज्यादा नोटा को ही लोग पसंद करते नजर आये। बागपत से प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी चौधरी मोहकम के खाते में 189 को वोट आये, जबकि यहां नोटा को 1903 वोट मिले हैं। इसी तरह मेरठ में नासिर अली खान को मात्र 510 वोट मिले, यहां भी नोटा को उनसे ज्यादा 3450 वोट मिले हैं। शिवपाल यादव अपने भतीजे अक्षय यादव के सामने फेल नजर आये हैं।
अब क्या है शिवपाल यादव के पास विकल्प
शिवपाल यादव और अखिलेश यादव का रार चरम पर जब पहुंचा तो अखिलेश यादव को भी इसकी कीमत चुकानी पड़ी है। राजनीतिक के जानकारों की माने तो अखिलेश सरकार ने अच्छा काम किया था लेकिन चाचा-भतीजे के झगड़े ने अखिलेश को यूपी की सत्ता से बेदखल कर दिया। इसके बाद शिवपाल यादव ने उनसे किनारा करके नई पार्टी बना डाली और चुनाव में दावेदारी पेश की।
शिवपाल अपना कुछ नहीं कर पाये लेकिन अंजाने में उन्होंने सपा-बसपा का वोट काटकर भतीजे का नुकसान करा दिया। शिवपाल यादव के पास ज्यादा विकल्प नहीं है। जानकारों की माने तो शिवपाल यादव को अखिलेश के साथ दोबारा जाना चाहिए नहीं तो उनका राजनीतिक भविष्य भी खतरे में पड़ जायेगा। हालांकि उपचुनाव में भी वो मजबूत दावेदारी पेश कर सकते हैं।