जुबिली न्यूज डेस्क
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को तीसरी बार संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) की 75वीं बैठक को संबोधित किया। अपनी 22 मिनट की स्पीच में प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र संघ में स्थायी सदस्यता, कोरोना महामारी, वैक्सीन, ड्रग्स से लेकर आतंकवाद सहित तमाम जरूरी मुद्दों को उठाया।
हालांकि अपने संबोधन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने चीन सीमा पर तनाव और गलवान घाटी पर शहीद हुए 20 सैनिकों का जिक्र नहीं किया। न ही इस बात का उल्लेख किया कि भारत और चीन की सरहद पर दोनों देश के बीच रिश्ते कैसे हैं।
बता दें कि पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में 15-16 जून की रात को चीन और भारत की सेना के बीच आमने-सामने का संघर्ष हुआ था। इसमें 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे। इसके बाद दोनों देशों के बीच राजनयिक और सैन्य स्तरों पर बातचीत शुरू हुई। लेकिन बीते तीन महीने में 30 से ज्यादा बैठकें होने के बाद भी यह बातचीत किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी है और दोनों देशों के बीच स्थिति अभी भी बेहद तनावपूर्ण बनी हुई है।
बीती सात सितंबर को एलएसी (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल) के निकट दोनों देशों के सैनिकों ने हवाई फायरिंग भी की। कुछ रोज पहले यह खबर भी आयी है कि चीन एलएसी के निकट भारी-भरकम हथियार तैनात कर रहा है।
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इतान ही नहीं सैटलाइट से मिली तस्वीरों से पता चला है कि पूरे अक्साई चिन इलाके में स्थित चीनी एयर बेस को चीन ने मिसाइलों, तोपों और लंबी दूरी तक मार करने में सक्षम रॉकेटों से पाट दिया है। यानी कि भारत और चीन के बीच संघर्ष का खतरा अभी भी बना हुआ है। लेकिन इसका जिक्र प्रधानमंत्री मोदी ने यूएन में नहीं किया।
यूएन में जिक्र इस जरूरी है क्योंकि द्वितीय विश्वयुद्ध के विजेता देशों ने मिलकर संयुक्त राष्ट्र को अन्तर्राष्ट्रीय संघर्ष में हस्तक्षेप करने के उद्देश्य से स्थापित किया था। वे चाहते थे कि भविष्य में फ़िर कभी द्वितीय विश्वयुद्ध की तरह के युद्ध न उभर आए। अब सवाल उठता है कि भारत और चीन के बीच संघर्ष की स्थिति बन रही है तो क्या इस मुद्दे को यूएन में उठाया जाना जरूरी नहीं था। क्या चीन काली करतूतों का पर्दाफाश दुनिया के सामने नहीं किया जाना चाहिए।
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इस बारे में प्रोफेसर सीपी राय ने कहा, भारत और चीन के बीच जिस तरह से तनाव का माहौल है और जिस तरह से चीन अपनी चालबाजियों से बाज नहीं आ रहा है। उसे देखते हुए है प्रधानमंत्री मोदी को अन्तर्राष्ट्रीय फोरम पर इस मामले को उठाना चाहिए था। जिससे चीन पर अन्तर्राष्ट्रीय दबाव बनता है। लेकिन पीएम मोदी पहले ही बयान दे चुके हैं कि चीन ने भारत में कोई घुसपैठ नहीं किया। अपने इस झूठ को सही साबित करने की जुगत में उन्होंने यूएन में मिला मौका गवां दिया।