Monday - 28 October 2024 - 10:50 PM

भारत में 69 लाख महिलाओं को कैंसर से बचाया जा सकता था, लेकिन…

जुबिली न्यूज डेस्क

भारत में कैंसर से असमय जान गंवाने वालीं महिलाओं की जान बचाई जा सकती थी। 63 प्रतिशत महिलाओं को स्क्रीनिंग, जांच और रिस्क फैक्टर को कम कर बचाया जा सकता था। वहीं 37 प्रतिशत को समय पर उपचार देकर बचाया जा सकता है। यह जानकारी लैंसेट कमिशन की नई रिपोर्ट में सामने आयी है। रिपोर्ट का टाइटल है ‘Women, Power and Cancer’

रिपोर्ट में कहा गया है कि कैंसर से मरने वालीं लगभग 6.9 मिलियन महिलाओं की जान बचाई जा सकती थी। वहीं 4.03 मिलियन का इलाज किया जा सकता था।

रिपोर्ट में कहा गया है कि भले ही पुरुषों में कैंसर का खतरा अधिक होता है, जो दोनों जेंडर को प्रभावित करता है। लेकिन महिलाओं में कैंसर के मामले और मृत्यु दर अधिक है। वैश्विक स्तर पर, कैंसर के नए मामलों में 48% और कैंसर से होने वाली मौतों में 44% महिलाएं शामिल हैं। ऐसा तब है, जब महिलाओं में होने वाले कुछ कैंसर (जैसे- स्तन और गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर) अधिक रोकथाम योग्य और उपचार योग्य होते हैं।

संसद में पेश आंकड़ों के मुताबिक

संसद में पेश आंकड़ों के मुताबिक, अनुमान है कि 2025 में कैंसर मरीजों की संख्या 15 लाख से ज्यादा हो जाएगी। 2020 के आंकड़ों से पता चलता है कि प्रति एक लाख की आबादी में से 94.1 पुरुषों और 103.6 महिलाओं को कैंसर होता है। पुरुषों को मुंह, फेफड़ा, जीभ और पेट में कैंसर होने का खतरा अधिक होता है। कैंसर के 36 प्रतिशत मामले इन्हीं अंगों में पाए जाते हैं। महिलाओं को स्तन, गर्भाशय ग्रीवा (Cervix), गर्भाशय, अंडाशय (ovary) और फेफड़ा में कैंसर होने का खतरा अधिक होता है। कैंसर के 53 प्रतिशत मामले इन अंगों में पाए जाते हैं।

वर्ष मामलों की संख्या मरने वालों की संख्या
2020 13.92 लाख 770230
2021 14.26 लाख 789202
2022 14.61 लाख 808558
2025 15.69 लाख (अनुमानित)

महिलाओं की ऐसी स्थिति क्यो है?

रिपोर्ट में बताया गया है कि महिलाओं की इस स्थिति के पीछे कई कारक हैं। जैस महिलाओं के पास जानकारी का अभाव होता है। फैसला लेने और पैसों का पावर उन्हें नहीं दिया गया होता है। इसके अलावा घर के नजदीक प्राथमिक स्तर पर सेवाओं की उपलब्धता के अभाव में महिलाओं को समय पर और उचित देखभाल प्राप्त करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि चाहे वे दुनिया के किसी भी हिस्से में रहती हों और समाज के किसी भी तबके से आती हों, महिलाओं में पुरुषों की तुलना में जानकारी और निर्णय लेने की शक्ति की कमी होने की संभावना अधिक होती है। इसमें कहा गया है कि कैंसर के कारण महिलाओं को वित्तिय रूप से बरबाद होने का खतरा भी अधिक होता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि जब कैंसर केयर प्रोवाइड करने की बात आती है, तब वहां महिलाओं का महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम है। उन्हें लिंग-आधारित भेदभाव और यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। वे सबसे बड़ी अवैतनिक कार्यबल (बिना पैसा काम करने वालीं) भी हैं। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि महिलाओं द्वारा अवैतनिक कैंसर केयर का मूल्य भारत के राष्ट्रीय स्वास्थ्य व्यय का लगभग 3.66% है।

जानिए विशेषज्ञ क्या कहते हैं?

नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में सहायक प्रोफेसर डॉ अभिषेक शंकर कहते हैं, “कैंसर केयर में निश्चित रूप से एक लिंग आधारित पहलू है। महिलाओं में, विशेषकर समाज के गरीब तबके में, स्वास्थ्य देखभाल बहुत कम है। महिलाओं का इलाज प्राथमिकता नहीं है। यही कारण है कि उनकी हालत पुरुषों से भी बदतर होने की संभावना है।

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शंकर ने कहा कि कैंसर और इसकी रोकथाम के बारे में जानकारी के अलावा, सामाजिक बदलाव की भी जरूरत है, “महिलाओं में सबसे आम कैंसर स्तन और गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर है। हालांकि, महिलाएं इन समस्याओं को लेकर पुरुष डॉक्टरों के पास जाने से झिझकती हैं या महिला डॉक्टर से जननांग क्षेत्र की जाँच करने से भी हिचकिचाती हैं, जिससे जांच और उपचार में देरी होती है।”

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