जुबिली न्यूज़ ब्यूरो
लखनऊ. किसी भी समाज की रीढ़ उसके बैंक होते हैं. ज़रूरतमंदों को आड़े वक्त में मदद देने का काम बैंक ही करते हैं. भारत कृषि प्रधान देश है, इसी वजह से भारत में सहकारी बैंकों की कल्पना भी की गई ताकि इनके ज़रिये कृषि और पंचायतों की आधारभूत ज़रूरतों को पूरा किया जाता रहे. उत्तर प्रदेश के सहकारी बैंकों की कमान खेती किसानी वाली पृष्ठभूमि से आने वाले सुपरिचित राजनीतिज्ञ शिवपाल सिंह यादव के पास पिछले तैंतीस साल से है. शिवपाल सिंह यादव को सहकारी बैंकों की कमान इसी वजह से सौंपी गई थी कि उनकी देखरेख में किसानों और पंचायतों को किसी किस्म की दिक्कत नहीं आयेगी लेकिन शिवपाल सिंह यादव की सरपरस्ती में काम करने वाले बैंक प्रबंधन ने अपने भ्रष्ट आचरण के ज़रिये इन बैंकों को डुबा देने में कोई कोर कसर नहीं रखी.
सहकारी बैंक में हुए करीब 52 अरब रुपये के घोटाले की एक छोटी सी तस्वीर हमने आपको दो दिन पहले ही दिखाई थी. हम आपको इस घोटाले की हर तस्वीर दिखाएंगे और हर उस कोने में लेकर चलेंगे जहां पर रुपयों की बंदरबांट करने वाले बैंककर्मी अपने भ्रष्ट आचरण के साथ आपको साफ़ नज़र आयें.
सहकारी बैंकों को सरकार ने विभिन्न योजनाओं में अनुदान देने के लिए 32 करोड़ 91 लाख 66 हज़ार 227 रुपये उपलब्ध करवाए. इतनी बड़ी राशि को न तो अनुदान में उपयोग किया गया और न ही इसे राज्य सरकार को वापस ही लौटाया गया. जांच में यह मामला उजागर हुआ और इसमें सभी शाखा प्रबंधकों को ज़िम्मेदार ठहराया गया है.
एक मुश्त समाधान योजना में शाखा प्रबंधकों को एक निश्चित राशि की ब्याज में छूट देने का अधिकार है लेकिन बाराबंकी, फतेहपुर,रामनगर, कासगंज और सोरों में सहकारी बैंकों की शाखाओं ने दो लाख, 49 हज़ार 328 रुपये की अधिक छूट प्रदान कर दी. जांच में यह मामला सामने आया है और तत्कालीन शाखा प्रबंधकों को ज़िम्मेदार मानते हुए इस राशि की वसूली के आदेश दिए गए हैं.
एक मुश्त समाधान योजना के प्रचार-प्रसार के लिए विज्ञापन देने के लिए समाचार पत्रों का चयन करने के लिए मानक तय हैं लेकिन इन मानकों को दरकिनार करते हुए एक लाख 56 हज़ार 625 रुपये का दुरूपयोग कर लिया गया और इस तरह से सरकारी खजाने को चोट पहुंचाने का काम किया गया.
सहकारी बैंकों के अधिकारियों को अर्दली रखने का अधिकार होता है. 15 बैंक अधिकारियों ने अपने इस अधिकार का इस्तेमाल करते हुए 15 सौ रुपये प्रति माह मानदेय पर अर्दली नियुक्त करने की बात कही और इस मद में दो लाख 80 हज़ार रुपये का भुगतान भी कर दिया गया लेकिन इस भुगतान के लिए सक्षम अधिकारियों से अनुमोदन तक नहीं लिया गया. जांच अधिकारी ने इसे गंभीर वित्तीय अनियमितता मानते हुए इन सभी 15 अधिकारियों से इस धन की वसूली किये जाने की अनुशंसा की है.
सहकारी बैंकों के अधिकारी इतने बेलगाम हो चुके हैं कि इन्हें शासनादेशों की परवाह तक नहीं है. शासनादेश संख्या ए-1-864/10-8-15 (1)/86 दिनांक 23-09-2008 और 5/2016/253 /18-2-16-2(एसपी)/2010 दिनांक 01-04-2016 तथा क्रय मैनुअल -2016 में दी गई व्यवस्था का अनुपालन न करते हुए 17 लाख 35 हज़ार रुपये की स्टेशनरी खरीद ली गई.
सहकारी बैंक की सोरों शाखा ने मुर्गी पालन योजना में छोटे खां पुत्र कल्लू खां को बगैर निर्धारित औपचारिकता पूरी किये ही एक लाख बीस हज़ार रुपये का ऋण उपलब्ध करवा दिया गया. इसी तरह से बैंक की बरेली शाखा ने पूरन लाल पुत्र नन्हकू लाल को डेयरी योजना में निर्धारित मानकों का अनुपालन न करते हुए एक लाख रूपये का ऋण दे दिया गया.
जांच में पाता चला है कि वर्ष 2016-17 में वितरित किया जाने वाला बोनस 2018-19 में वितरित किया गया और इस मामले में निर्धारित मानकों का पालन नहीं किया गया. बैंक प्रबंधन ने चार करोड़ 38 लाख 32 हज़ार 526 रुपये वितरित किये थे. इस मामले में जांच कमेटी ने वित्तीय अनियमितता की बात कही है.
सहकारी बैंकों में भ्रष्टाचार की दास्तान बहुत लम्बी है. तमाम किस्से हैं. भ्रष्टाचार के तमाम तरीके हैं. कैसे सरकारी धन की बन्दरबांट होती है उसकी बिल्कुल साफ़-साफ़ नज़र आने वाली तस्वीरें हैं. हम आपको पूरी दास्तान सुनायेंगे. भ्रष्टाचार की गंगोत्री का हर किस्सा सुनायेंगे. यह सिर्फ दूसरी क़िस्त है. किस्सा अभी जारी है.
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