जुबिली न्यूज़ डेस्क
भारतीय सिनेमा का सबसे प्रतिष्ठित अवॉर्ड माना जाने वाला दादा साहब फाल्के पुरस्कार से साउथ सिनेमा के दिग्गज अभिनेता रजनीकांत को दिया गया। ये 51वां दादा साहब फाल्के पुरस्कार था। इस बात की घोषणा केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने की। इस बार कोरोना की वजह से इन सभी पुरस्कारों की घोषणा देरी से हुई है। अभी हाल ही में नेशनल अवॉर्ड की घोषणा की गई थी।
गौरतलब है कि तमिलनाडु की चुनावी राजनीति में भी रजनीकांत कदम रखने वाले थे लेकिन पिछले साल दिसंबर में उन्होंने फैसला किया था कि वह चुनावी राजनीति से बाहर ही रहेंगे। बता दें कि साल 2018 में इस पुरस्कार से सदी के महानायक अमिताभ बच्चन और साल 2017 में भूतपूर्व भाजपा नेता और अभिनेता विनोद खन्ना को दिया गया था।
इस मामलें में जावड़ेकर ने ट्वीट में कहा, ‘भारतीय सिनेमा के इतिहास के सबसे महान अभिनेताओं में से एक के लिए दादासाहेब फाल्के पुरस्कार 2019 की घोषणा करने पर बहुत खुश हूं। अभिनेता, निर्माता और पटकथा लेखक के रूप में उनका (रजनीकांत) योगदान प्रतिष्ठित रहा है। मैं ज्यूरी आशा भोसले, सुभाष घई, मोहनलाल, शंकर और बिस्वास चटर्जी का शुक्रिया अदा करता हूं।’
बात की जाए रजनीकांत की तो वो साउथ सिनेमा के दिग्गज अभिनेताओं में से एक हैं। लेकिन उनका बचपन बेहद कठिनाइयों भरा रहा है। बचपन में उन्हें आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा। उनका असली नाम शिवाजी राव गायकवाड़ था। यही शिवाजी राव आगे चलकर रजनीकांत बने।
रजनीकांत महज पांच साल के थे जब उनकी मां का निशान हो गया था। उसके बाद परिवार की जिम्मेदारी उनके कंघे पर आ गई। रजनीकांत के लिए घर चलाना इतना आसान नहीं था। घर चलाने के लिए उन्होंने कूली तक का काम किया।
सिनेमा में आने से पहले रजनीकांत बस कंडक्टर की नौकरी किया करते थे। उन्होंने तमिल फिल्म इंडस्ट्री में बालचंद्र की फिल्म ‘अपूर्वा रागनगाल’ से एंट्री ली थी। इस फिल्म में कमल हासन और श्रीविद्या भी थीं। अपने अभिनय की शुरुआत उन्होंने कन्नड़ नाटकों से की थी। दुर्योधन की भूमिका में रजनीकांत घर-घर में लोकप्रिय हुए थे।
धीरे धीरे रजनीकांत साउथ के सुपरस्टार बन गये। उनके प्रति लोगों में इस हद तक दीवानगी है कि लोग उन्हें ‘भगवान’ मानते हैं। रजनीकांत की फिल्में सुबह साढ़े तीन बजे तक रिलीज हो जाती हैं। कुली से सुपरस्टार बनने तक के सफ़र में रजनीकांत के दोस्त राज बहादुर ने उनका काफी साथ दिया। उन्होंने ही उनके अभिनेता बनने के सपने को जिंदा न रखा ।
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यही नहीं उन्होंने ही रजनीकांत को मद्रास फिल्म इंस्टिट्यूट में दाखिला लेने के लिए कहा। उनकी की बदौलत रजनीकांत आगे बढ़ते गए और साउथ इंडस्ट्री में छा गये। इसके बाद साल 1983 में उन्होंने बॉलीवुड में कदम रखा। उनकी पहली हिंदी फिल्म अंधा कानून थी। इसके बाद रजनीकांत ने सिर्फ तरक्की की सीढ़ियां चढ़ीं। आज वे दक्षिण भारतीय सिनेमा के सबसे बड़े स्टार कहे जाते हैं।