Wednesday - 13 November 2024 - 3:54 AM

34 साल बाद भी भोपाल गैस त्रासदी के गम को कम नहीं कर पाई सरकार

BHOPAL-GAS-TRAGEDY

1984 की भोपाल गैस त्रासदी दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक है। इस दुर्घटना को 34 साल हो गए है। इतने साल के बाद भी सरकार पीड़ितों के दर्द पर मरहम नहीं लगाई है। पीड़ित मुआवजे समेत बुनियादी सुविधाओं के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं।

14-15 फरवरी 1989 को केन्द्र सरकार और अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड कारपोरेशन (यूसीसी) के बीच हुआ समझौता पूरी तरह से धोखा था और उसके तहत मिली रकम का हरेक गैस प्रभावित को पांचवें हिस्से से भी कम मिल पाया है।

नतीजतन, गैस प्रभावितों को स्वास्थ्य सुविधाओं, राहत और पुनर्वास, मुआवज़ा, पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति और न्याय इन सभी के लिए लगातार लड़ाई लड़नी पड़ी है।

इस दुर्धटना ने हजारों लोगों को मौत के मुंह में धकेल दिया, 600,000 से ज्यादा मजदूर और लोग हुए थे प्रभावित, जहरीले कण अब भी मौजूद हैं, अगली पीढ़ियां श्वसन संबंधित बीमारियों से जूझ रही है।

संयुक्त राष्ट्र की श्रम एजेंसी अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि मध्य प्रदेश की राजधानी में यूनियन कार्बाइड के कीटनाशक संयंत्र से निकली कम से कम 30 टन मिथाइल आइसोसायनेट गैस से 600,000 से ज्यादा मजदूर और आसपास रहने वाले लोग प्रभावित हुए थे।

इसमें कहा गया है कि सरकार के आंकड़ों के अनुसार 15,000 मौतें हुई। जहरीले कण अब भी मौजूद हैं और हजारों पीड़ित तथा उनकी अगली पीढ़ियां श्वसन संबंधित बीमारियों से जूझ रही हैं।

साल 1919 के बाद अन्य नौ बड़ी औद्योगिक दुर्घटनाओं में चेर्नोबिल और फुकुशिमा परमाणु दुर्घटना के साथ ही ढाका के राणा प्लाजा इमारत ढहने की घटना शामिल हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि हर साल पेशे से जुड़ी मौतों की वजह तनाव, काम के लंबे घंटे और बीमारियां है।

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आईएलओ की मनाल अज्जी ने कहा, ‘रिपोर्ट की मानें तो 36% कामगार कार्यस्थल पर बेहद लंबे घंटों तक यानी हर सप्ताह 48 घंटे से ज्यादा देर तक काम कर रहे हैं।’

Radio_Prabhat
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