उत्कर्ष सिन्हा
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने कार्यकाल के 3 साल पूरे कर लिए । करोना के प्रकोप के मद्देनजर योगी सरकार के तीन साल पूरे होने का जश्न तो नहीं मनाया गया लेकिन उन्होंने एक प्रेस कांफ्रेंस के जरिए अपनी उपलब्धियां गिनाई।
योगी ने प्रयागराज में एतिहासिक कुम्भ के आयोजन की बात कही, प्रवासी भारतीयों के सम्मेलन का जिक्र किया और अपने विकास कार्यों की एक लंबी फेहरिस्त सामने रखी , जिसमे 68 वर्ष बाद उत्तर प्रदेश दिवस, वन डिस्टिक वन प्रोडक्ट, इन्वेस्टर सम्मिट, 21 फोकस सेक्टर पालिसी, फोर लेन कनेक्टिविटी, एअर ट्रांसपोर्ट का जिक्र किया, उन्होंने बताया कि पूर्वांचल एक्सप्रेस वे का 40 फीसदी काम हो चुका है और 75 जिलों में बिजली की आपूर्ति हो रही है और आज 4 शहर मेट्रो के लिए तैयार हैं ।
निश्चित रूप से ये फेहरिस्त एक प्रभावी कार्यकाल का इशारा कर रही है , लेकिन इसके साथ कई ऐसी बातें भी हैं जिनपर चर्चा करना जरूरी है, खासतौर पर तब जब प्रदेश अपने मुख्यमंत्री के तीन सालों के कार्यकाल की समीक्षा कर रहा हो और तब भी जब अगले चुनावों में महज दो साल ही बाकी हों ।
तो फिर इस समीक्षा में उन पहलूओं पर थोड़ी चर्चा कर ली जाए जिन्हे मुख्यमंत्री ने अपने प्रेस कांफ्रेंस से अलग रखा है।
कट्टर हिन्दुत्व की छवि को मजबूत करने का काम
केन्द्रीय मंत्री मनोज सिन्हा और तत्कालीन प्रदेश भाजपा अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य की मजबूत दावेदारी के बीच योगी आदित्यनाथ को जब सूबे का मुखिया बनाया गया तो उनके साथ एक मजबूत हिंदुत्ववादी नेता की पहचान थी। वे इसके पहले किसी भी प्रशासनिक पद पर नहीं रहे थे, तब ये माना गया कि वे एक सख्त प्रशासक के रूप में भी उतने ही सफल होंगे जितने बतौर हिंदुत्ववादी नेता रहे।
योगी ने इस काम को बखूबी अंजाम भी दिया, उन्होंने अयोध्या में भव्य दीपावली मनाने से ले कर शहरों और कस्बों के नाम बदलने तक हर जगह हिन्दू प्रतीकों का भरपूर इस्तेमाल किया। नाम बदलने वाली उनकी नीति पर तो खूब सारे जोक्स भी सोशल मीडिया पर आए । पर्यटन नीति में भी इसकी झलक दिखी जब दुनिया भर में मशहूर ताज महल के बारे में एक नकारात्मक टिप्पणी के साथ साथ उन्होंने हिन्दू तीर्थों काशी, मथुरा और अयोध्या को प्रमोट किया । इस सारे घटनाक्रम के दौरान वे कभी ये बताना नहीं भूले कि इसके पहले सरकारें सिर्फ मुस्लिम त्योहारों का ही ध्यान रखती थी ।
वरिष्ठ पत्रकार कुमार भवेश चंद्र कहते हैं – “योगी ने हिन्दू वोट बैंक को एकजुट करने के लिए एक तरफ तो मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोपों का सहारा लिया, दूसरी तरफ वे खुद जम कर हिन्दू तुष्टीकरण करते रहे। इसके जरिए वे कट्टर हिन्दुत्व को भी बढ़ावा देने से नहीं चूके।“
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वरिष्ठ पत्रकार रतनमणि लाल का कहना है कि योगी आदित्यनाथ ने कट्टर हिंदूवादी नेता के तौर पर राजनीति की शुरुआत की थी और अब भी वहीं है। बीजेपी को एक ऐसे नेता की तलाश थी जो धार्मिक नेता के तौर उसकी पकड़ एक समुदाय पर हो और इस कड़ी में योगी को नाम सबसे ऊपर आया है। योगी की तारीफ करनी होगी उन्होंने अपनी छवि से कोई समझौता नहीं किया।
सवालों के घेरे में कानून व्यवस्था पर सख्त दिखने की कोशिश
मुख्यमंत्री का पद सम्हालने के साथ ही योगी ने ये संकेत दे दिए थे कि वे अपराधियों के प्रति नरमी नहीं बरतेंगे । पुलिस को उन्होंने संदेश दिया – “ठोंक दो” । जिले दर जिले अपराधियों से खुली मुठभेड़े हुई और खबरें ये भी आने लागि कि कई अपराधियों ने तो पुलिस को पत्र लिख कर आत्मसमर्पण कर दिया। लेकिन इस बीच काफी जगह पुलिस बेलगाम भी होने लागी और कई मुठभेड़े सवालों के घेरे में आ गई और ऐसी मुठभेड़ों में जान गवाने वाले आम नागरिकों के मामलों की जांच भी शुरू हो गई ।
लेकिन इन सबके बीच अपराधियों पर लगाम नहीं लगी। यूपी की राजधानी लखनऊ और तीर्थ नागरी प्रयाग राज में हत्याओ का सिलसिला तेज हो गया और ये जिले अपराधियों के लिए नए केंद्र बन गए । जेल के अंदर भी हत्याएं होने लगी और फिर सरकार पर भी अपराधियों के मामले में सेलेक्टिव होने के आरोप भी लगे। बृजेश सिंह और धनंजय सिंह जैसे सत्ता के करीबी माफियाओं को सरकार द्वारा संरक्षण देने के आरोप भी विपक्ष ने लगाए।
वरिष्ठ पत्रकार सुरेश बहादुर सिंह कहते हैं- “योगी ने गुंडाराज और अराजकता फैलाने वालों से प्रदेश को मुक्त करने का प्रयास किया तो है लेकिन कानून व्यवस्था को लेकर अभी भी मेहनत करने की जरूरत है।“
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विकास के मामले में अनिश्चितता
योगी ने विकास के लिए अपनी प्रतिबद्धता दिखाने की कोशिश हमेशा ही की । तीन सालों में उन्होंने तीन बड़े इवेंट किए । इन्वेस्टर्स समिट, ग्राउंड ब्रेकिंग समिट और डिफेंस एक्सपो के जरिए योगी सरकार ने ये दिखाने की कोशिस की है कि वे निवेशकों के स्वागत के लिए तैयार है। लेकिन इतने प्रयासों के बाद भी निवेशक पूर्वी और मध्य यूपी की तरफ नहीं आकर्षित हुए।
योगी ने पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार के कामों को आगे बढ़ाने में भी अरुचि दिखाई है , नतीजतन लखनऊ में बनी आईटी सिटी में कोई नई कंपनी नहीं आई, जयप्रकाश नारायण केंद्र बीते तीन वर्षों से अपने पूरे होने के लिए बजट का इंतजार कर रहा है , मेट्रो का काम भी वहीं रुका हुआ है, उसके विस्तार की सिर्फ चर्चाएं हो रही है मगर जमीन पर गतिविधियां नहीं दिखाई दे रही। बिजली उत्पादन की किसी नई यूनिट की घोषणा नहीं हुई और प्रदेश मे विकास का कोई नया प्रतीक खड़ा नहीं हुआ ।
वरिष्ठ पत्रकार भास्कर दुबे का मनाना है कि योगी सरकार के पास तीन सालों में दिखाने को कुछ भी नहीं है। उन्होंने कहा कि योगी ने केवल अखिलेश की योजना का फीता काटा है। विकास के मोर्चे पर योगी के पास तीन साल की कोई विशेष उपलब्धि नहीं है।
नौकरशाही की कोटरी में फंसे ?
तीन साल पहले योगी ने अपने एक करीबी से कहा था कि उनकी सबसे बड़ी चुनौती नौकरशाही होगी। ये बाद समझने के बावजूद योगी नौकरशाही के तिलस्म को नहीं तोड़ सके हैं। सत्ता के गलियारों में इस बात की चर्चा तेज होने लगी है कि नौकरशाहों की एक छोटी टोली उनपर इस कदर हावी है कि वे असलियत से दूर हो गए हैं। विभागों में काम करने वाले अधिकारी अब निर्णय लेने से बचाने लगे हैं और इसलिए फाईलो का समयबद्ध निस्तारण करने का मुख्यमंत्री का वादा महज वादा ही रह गया है ।
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वरिष्ठ पत्रकार पत्रकार हेमंत तिवारी ने कहा कि योगी ने शुरुआती साल में कड़े तेवर दिखाया जरूर थे लेकिन बाद में उनका काम काज भी पहले की सरकारों की तरह रहा है। उन्होंने कहा कि योगी ने ब्यूरोक्रेसी पर ज्यादा विश्वास ज्यादा दिखाया है जो शायद उनकी सरकार के लिए ठीक नहीं रहा है।
भ्रष्टाचार पर जीरो टालारेंस का खौफ कारगर है ?
यह भी एक ऐसा विषय है जिसपर योगी ने काफी सख्ती दिखाई है। भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे तमाम अफसरों को निलंबित किया गया है और उनपर बर्खास्तगी की कार्यवाही भी हुई है। इस खौफ ने अधिकारियों को डराया भी है, इस वजह से भी विभागों में कामकाज काफी धीमा हुआ है। यहाँ भी खुद योगी तो सख्त दिखाई देते हैं लेकिन उनकी कार्यवाहियाँ असरदार नहीं हो पा रही। उनके करीबी होने का दावा करने वाले कई विभागों के अधिकारी टेंडर को कैंसिल कर टेंडर प्रक्रिया को तब तक कर रहे हैं जब तक उनके कारीबियों का फायदा न हो। स्वास्थ्य और पुलिस जैसे महकमों में भष्टाचार के किस्से आम हो चुके हैं लेकिन दोषी कार्यवाही की जद से बाहर हैं। कुल मिल कर यहाँ भी कोटरी के नौकरशाह ही हावी हैं और मुख्यमंत्री से मनचाहे फैसले करवा ले रहे हैं।
अपनों से दूरी का नुकसान
इसे व्यस्तता कहें या नई कोटरी का चमत्कार, लेकिन फिलहाल मुख्यमंत्री अपने पुराने शुभचिंतकों से थोड़ा दूर हुए हैं जो बीते 20 सालों की उनकी राजनीतिक यात्रा में उनके समालोचक रहे और उन्होंने योगी को सही सलाह दी थी। इस वजह से योगी का अपना सूचना तंत्र करीब करीब खत्म हो गया है और अब वे सलाहकारों और नौकरशाहों की एक छोटी टोली पर निर्भर रह गए दिखाई देते हैं । यह भी कारण है कि वे अपनी सदीक्षाओं के बावजूद प्रभावी साबित नहीं हो पा रहे।
कुल मिला कर देखें तो योगी एक ऐसे मुख्यमंत्री की तरह नजर आते हैं जो करना तो काफी कुछ चाहते हैं लेकिन उनके पास व्यापक समग्र दृष्टि का अभाव है । वे अपने पूर्वाग्रहों से दूर नहीं पा रहे इसलिए उनके प्रयास या तो सवालों के घेरे में आ जाते हैं या ये प्रयास वास्तव में प्रभाव नहीं छोड़ पा रहे । वरिष्ठ पत्रकार अजय कुमार की टिप्पणी काफी महत्वपूर्ण हो जाती है । अजय कुमार कहते हैं “जो तीन साल कार्यकाल वो अपनी जगह है लेकिन आगे अगर दोबारा सत्ता में लौटना है तो योगी सरकार को अब विकास पर लौटना होगा क्योंकि तीन सालों में विकास के नाम पर कुछ खास नहीं हुआ है। ऐसे में अगले दो साल उनके लिए काफी अहम है।