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मद्रास हाईकोर्ट के न्यायाधीश वी पार्थीबान ने कहा कि ‘जिन केसों में लड़कियां 18 साल से कम उम्र की होने पर भी (संबंध बनाने के लिए) सहमति देने योग्य होती हैं, मानसिक रूप से परिपक्व होती हैं, दुर्भाग्य से उनमें भी पोक्सो कानून लग जाता है। इसलिए ऐसे मामलों की सारी सच्चाई पता होने पर ‘बच्चा’ होने की परिभाषा 18 के बजाय 16 वर्ष के आधार पर तय की जानी चाहिए।’
यह बातें न्यायाधीश पार्थीबान ने एक नाबालिग याचिकाकर्ता की सुनवाई करते हुए कही है। उसे तमिलनाडु के नमक्कल स्थित फास्ट ट्रैक महिला कोर्ट ने पोक्सो कानून के तहत दस साल की सजा सुनाई है।
न्यायाधीश पार्थीबान ने कहा कि 16 से 18 वर्ष की उम्र के युवाओं के आपसी सहमति से बनाए गए सेक्स संबंधों को पोक्सो एक्ट (बच्चों को यौन अपराध से बचाने वाले कानून) के तहत नहीं लाया जाना चाहिए।
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक सुनवाई के दौरान जस्टिस वी पार्थीबान ने कहा, ’16 साल की उम्र के बाद आपसी सहमति से बनाया गया यौन संबंध या शारीरिक संपर्क पोक्सो कानून के सख्त प्रावधानों से बाहर किया जा सकता है, और यौन हमले व किशोर संबंध को समझते हुए यौन अपराध के मामलों के लिए थोड़ा कम कड़े प्रावधान एक्ट में शामिल किए जा सकते हैं।’
कोर्ट ने इस संबंध में ‘बच्चे’ की परिभाषा पर पुनर्विचार किए जाने की भी बात की। उसने कहा कि 18 साल से कम उम्र के युवाओं को ‘बच्चा’ मानने के बजाय 16 साल से कम उम्र के बच्चों को ‘बच्चा’ माना जाना चाहिए।