जुबिली न्यूज डेस्क
नई दिल्ली: रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध को आज 1 वर्ष पूरे हो गए. इस युद्ध की विभीषिका को उपरोक्त दोनों कथनों से भली-भांति समझा जा सकता है. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने 24 फरवरी, 2022 को यूक्रेन में अपने ‘विशेष सैन्य अभियान’ का ऐलान किया था. उन्होंने तब कहा था कि रूस का मकसद यूक्रेन पर कब्जा करना नहीं, बल्कि उसका विसैन्यीकरण है. जवाब में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने कहा था, ‘अगर वह हमला करते हैं, तो हम उनका सामना करेंगे, पीठ नहीं दिखाएंगे.
बीते एक साल से यह युद्ध अनवरत जारी है, जिसका फिलहाल अंत होता नहीं दिख रहा. न यूक्रेन ने पीठ दिखाई और न ही रूस सिर्फ उसके विसैन्यीकरण तक सीमित रहा. न कोई जीता है और न कोई हारा है. बसे बसाए खूबसूरत शहर तबाह हुए हैं. हजारों लोग मारे गए हैं. करोड़ों विस्थापित हुए हैं और पड़ोसी देशों में शरणार्थी के रूप में जीवन काट रहे हैं. इस जंग में यूक्रेन बर्बाद हुआ है, तो रूस की भी दुर्गति हुई है.
दुनिया की अर्थव्यवस्था डगमगाई है. बीते एक साल में रूस ने यूक्रेन के प्रमुख शहरों और बंदरगाहों पर कब्जा कर लिया है. वहीं, यूक्रेन की सेना ने जवाबी कार्रवाई में ज्यादातर इलाकों को फिर से अपने कब्जे में ले लिया है. पश्चिमी देशों का अनुमान है कि इस जंग में रूस के 1.80 लाख और यूक्रेन के 1 लाख सैनिक या तो मारे गए होंगे या घायल हुए होंगे. यूक्रेन ने 23 फरवरी, 2023 तक रूस के 1,45,850 सैनिकों के मारे जाने का दावा किया है. हालांकि, उसने अपने सैनिकों की मौत का आंकड़ा कभी साझा नहीं किया है.
संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों की मानें तो इस जंग में अब तक यूक्रेन में 8000 से अधिक आम नागरिकों की मौत हो चुकी है और 13000 से ज्यादा घायल हुए हैं. जान गंवाने वालों में 60 फीसदी पुरुष और 40 फीसदी महिलाएं हैं. इस युद्ध ने एक बड़े शरणार्थी संकट को भी जन्म दिया है. यूएन ने बताया है कि करीब 4 करोड़ की आबादी वाले यूक्रेन से अब तक करीब 80 लाख लोग पड़ोसी देशों में शरण ले चुके हैं.
जर्मनी, पोलैंड, मॉल्डोवा जैसे देशों ने यूक्रेनी शरणार्थियों के लिए अपनी सीमाएं खोली हैं. कीव स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के एक अध्ययन के मुताबिक 24 फरवरी 2022 से दिसंबर 2022 तक रूसी हमलों में यूक्रेन का 138 अरब डॉलर (11 लाख करोड़ रुपये) का इन्फ्रास्ट्रक्चर तबाह हो गया है. यूक्रेन के विभिन्न शहरों में रूसी बमबारी और मिसाइल हमलों की चपेट में आकर 1.5 लाख से ज्यादा रिहायशी इमारतें खंडहर बन चुकी हैं.
इसी तरह पूरे देश में 3000 से ज्यादा शैक्षणिक संस्थानों को नुकसान पहुंचा है. इनमें से कई पूरी तरह, तो कुछ आंशित तौर पर डैमेज हुए हैं. लगभग 1500 के करीब धार्मिक-सांस्कृति आयोजन स्थलों और हजारों खेल स्थलों को नुकसान हुआ है. यूक्रेन के हेल्थ इंफ्रा को भी युद्ध ने तहस-नहस कर दिया है. देश में करीब 1100 से ज्यादा अस्पताल रूसी हमलों की जद में आकर बर्बाद हो चुके हैं.
रूस-यूक्रेन युद्ध से वैश्विक स्तर पर तेल और गैस के दाम में जबरदस्त इजाफा हुआ है. दुनिया के कई देशों को खाद्यान्न संकट, मसलन गेहूं की कमी का सामना करना पड़ रहा है. विश्व बैंक ने गत वर्ष कहा था कि 2023 में ग्लोबल जीडीपी ग्रोथ 3.2 फीसदी रह सकती है, जिसे अब उसने घटाकर 2.9 फीसदी कर दिया गया है. ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट ने 2023 के लिए ग्लोबल इंफ्लेशन रेट 6.6% रहने का अनुमान जताया है.
पुतिन ने जब यूक्रेन के खिलाफ युद्ध छेड़ा था, तो उन्होंने इतने लंबे वक्त तक इसके जारी रहने की उम्मीद नहीं की थी. उन्हें लगा था कि रूसी सेना बमुश्किल 1 से डेढ़ महीने में यूक्रेन के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लेगी. लेकिन, पश्चिमी देशों के हस्तक्षेप ने व्लादिमीर पुतिन का इंतजार और मुश्किलें दोनों बढ़ा दीं. अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, तुर्की, स्वीडन, लिथुआनिया, लातविया और नॉर्वे ने यूक्रेन को भारी मात्रा में हथियार मुहैया करवाए हैं.
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इन्हीं हथियारों के दम पर यूक्रेनी सेना ने रूस को करारी चोट पहुंचाई है. साथ ही रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं. व्लादिमीर पुतिन भले ही जाहिर न होने दें, लेकिन उन्हें रूस को हो रहे नुकसान का आकलन है. भले ही रूस में भौतिक तबाही का मंजर नहीं दिखता हो, लेकिन उसे आर्थिक तबाही का सामना जरूर करना पड़ रहा है. शायद इसीलिए व्लादिमीर पुतिन बीते दिनों में कई बार यूक्रेन से युद्ध विराम के लिए बातचीत करने पर सहमति जता चुके हैं, लेकिन यूक्रेन भी अब अड़ चुका है कि वह तब तक बातचीत में शामिल नहीं होगा, जब तक रूसी सेना उसके क्षेत्र से बाहर नहीं जाती.
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