Saturday - 2 November 2024 - 5:45 PM

सपा को क्यों सहना पड़ा हार का दंश

यशोदा श्रीवास्तव

यूपी के दोनों उपचुनाव के नतीजों का संदेश बड़ा है। इसलिए कि दोनों सीटें सपा के खाते की थी और दोनों ही पर सपा की प्रतिष्ठा दांव पर थीं। आजमगढ़ में सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की खुद की प्रतिष्ठा दांव पर थीं तो रामपुर में आजम खां की प्रतिष्ठा जुड़ी हुई थी।

भाजपा के कई छोटे बड़े नेताओं की प्रतिक्रिया है कि आजमगढ़ में अखिलेश हारे हैं तो रामपुर में आजम खां। कौन कहां से हारा कौन जीता इस पर चर्चा बेमतलब है। सीधी बात है कि दोनों संसदीय सीटों के उपचुनाव में भाजपा जीती है।

दोनों सीटों पर सपा भाजपा के बीच टक्कर कांटे की थी। आखिरी के 5–7 राउंड तक यह कहना मुश्किल था कि कौन जीतेगा? दोनों के अपने अपने जीत का आकलन था। आजमगढ़ और रामपुर उपचुनाव परिणाम के मायने निकाले जाने शुरू हो गए हैं। आजमगढ़ में बसपा उम्मीदवार गुड्डू जमाली सपा के धर्मेंद्र यादव से महज 20 हजार वोट कम पाये हैं। यहां पर सपा करीब 12 हजार मतों से ही हारी है।

सपा की यह हार तब हुई जब यहां विधानसभा के सभी दस सीटों पर उसके विधायक हैं। आजमगढ़ उपचुनाव के बारे में राजनीतिक विश्लेषकों का आकलन साफ था कि यहां बसपा के मुस्लिम उम्मीदवार के लड़ जाने से सपा की राह आसान नहीं है। निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि आजमगढ़ में सपा की हार की वजह बसपा उम्मीदवार रहा।

बसपा आमतौर पर उपचुनाव नहीं लड़ती लेकिन उसके आजमगढ़ से उपचुनाव लड़ने के पीछे के तमाम बिन्दुओं पर चर्चा जारी है। कोई इसे आगामी लोकसभा चुनाव में नए गठबंधन का संकेत मान रहा है तो कोई अखिलेश को सबक सिखाने की मायावती की जिद!

बहरहाल आजमगढ़ में बसपा उम्मीदवार के आ जाने से यहां त्रिकोणीय लड़ाई की संभावना जताई जा रही थी। वह अच्छे से देखने को मिला। सपा भाजपा और बसपा तीनों उम्मीदवारों में कांटे की टक्कर देखी गई। मतगणना का हर राउंड रोमांच से भरा रहा।

यूपी के दोनों उपचुनावों में मिली जीत से भाजपा का उत्साहित होना स्वाभाविक है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तो 2024 में सभी 80 सीटें जीतने की भविष्यवाणी कर दी है। दोनों उपचुनावों में भाजपा की जीत उस पर लग रहे तमाम आरोपों को खारिज कर रहे हैं। वह चाहे अग्निपथ हो, मंहगाई और बुलडोजर की मार हो, भाजपा को जिताकर जनता ने विपक्ष के इन आरोपों को परे कर दिया।

सपा ने दोनों उपचुनावों में हार की वजह शासन व प्रशासन स्तर पर की गई घपलेबाजी करार दिया है लेकिन आजमगढ़ में अपने चचेरे भाई के प्रचार में अखिलेश का न आना और रामपुर में आजम खां का अपनी पत्नी तंजीन फातिमा की उम्मीदवारी खारिज कर असीम राजा के उम्मीदवार तय करने के पीछे क्या था? क्या दोनों ही बड़े नेता इस चुनाव परिणाम से अवगत थे जिस वजह से अखिलेश अपनी पत्नी डिंपल को चुनाव लड़ाने से कन्नी काट गए और आजम खां अपनी पत्नी को?

रामपुर में मतदान के दिन वोटरों को बूथ तक पंहुचने में रुकावटें पैदा की गई। सपा का यह आरोप है लेकिन आजमगढ़ में तो ऐसा कुछ नहीं दिखा। रामपुर में भाजपा उम्मीदवार की जीत करीब 38 हजार वोट से हुई और मतदान का प्रतिशत भी अमूमन उपचुनाव जैसा ही था। उपचुनाव में आम चुनाव जैसा जोश मतदाताओं में नहीं होता,इसका भी नुकसान सपा को उठाना पड़ा होगा‌। फिलहाल यूपी की दोनों संसदीय सीटों को खोने का दंश सह पाना सपा के लिए मुश्किल होगा, इसमें दो राय नहीं। आजमगढ़ में आर्यमगढ़ की जीत का जश्न हर ओर मनाया जा रहा है।

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