मल्लिका दूबे
गोरखपुर। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा लगातार पांच बार जीती गयी गोरखपुर संसदीय सीट के लिए बीजेपी ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। लेकिन, उप चुनाव में हार के रूप में मिला गहरे घाव का जख्म पार्टी और खुद मुख्यमंत्री के लिए अभी भी हरा है। सपा से अपनी प्रतिष्ठापरक सीट वापस पाने के लिए बीजेपी प्रत्याशिता को लेकर फिलहाल जातीय समीकरणों का खेल समझने में जुटी है।
पार्टी ब्राह्मण चेहरे के रूप में उप चुनाव में शिकस्त झेलने वाले पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष उपेंद्र दत्त शुक्ल पर ऐतबार बरकरार रखेगी या निषाद बहुल इस क्षेत्र में बसपा से काफी समय पहले बीजेपी में आए पूर्व मंत्री जयप्रकाश निषाद या सपा से चंद दिन पहले भाजपा का दामन थामने वाले पूर्व मंत्री जमुना निषाद के पुत्र अमरेंद्र निषाद पर दांव खेलेगी या फिर किसी दूसरे फार्मूले को अपना जाएगा। इसे लेकर पार्टी में पूरी तरह चुप्पी का माहौल है।
पर, यह तो तय है कि बीजेपी हरहाल में गोरखपुर संसदीय सीट पर काबिज होने को जद्दोजहद में है। इस सीट से सीधे तौर पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रतिष्ठा जुड़ी हुई है। हालांकि सीएम की प्रतिष्ठा तो यहां सांसद पद से उनके त्यागपत्र देने के बाद वर्ष 2018 में हुए उप चुनाव में भी जुड़ी थी। जिस सीट को योगी आदित्यनाथ वर्ष 2014 में तीन लाख से अधिक वोटों के अंतर से जीतकर लगातार पांचवीं बार लोकसभा पहुंचे थे, उस सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी उपेंद्र दत्त शुक्ल प्रत्याशी प्रवीण निषाद से शिकस्त खा बैठे।
हालांकि उप चुनाव के नतीजों को लेकर यह भी चर्चा रही कि उपेंद्र दत्त शुक्ल योगी के पसंद के प्रत्याशी नहीं थे। चर्चाएं यह भी थीं कि योगी अपने करीबी डा. धर्मेन्द्र सिंह को चुनाव लड़ाना चाहते थे। डा. धर्मेन्द्र सिंह के खेमे में उपचुनाव की प्रक्रिया के दौरान नामांकन की तैयारी भी हो चुकी थी लेकिन ऐन वक्त पर उपेंद्र शुक्ल का नाम तय हो गया।
बहरहाल, सियासी बहानेबाजी के बीच एक बाद साफ थी कि उपचुनाव में मुख्यमंत्री के गृहक्षेत्र की सीट गंवाने से भाजपा को तगड़ा झटका लगा था। उपचुनाव के हरे जख्म को इस चुनाव में बीजेपी जीत के मरहम से भर लेना चाहती है। अंदरखाने में हाल फिलहाल जातीय समीकरणों को दुरुस्त करने की जुगत चल रही है। चुनावी अधिसूचना जारी होने से ठीक पहले यूपी के तमाम बोर्ड-निगमों में जिन लोगों को पदासीन किया गया उनमें से कई गोरखपुर संसदीय क्षेत्र के भी हैं।
सियासी रेवड़ियों को बांटने के दौरान समीकरणों का मुकम्मल ध्यान रखा गया। ब्राह्मण, ठाकुर, सैंथवार, यादव और निषाद हर बिरादरी के हिस्से कोई न कोई पद रहा। यही नहीं चुनावी घमासान शुरू होने से पहले सपा में अपनी स्थिति को लेकर नाराज चल रहे अमरेद्र निषाद और राजमति निषाद को भी बीजेपी में लाने के पीछे की मंशा किसी भी तरह से गोरखपुर की सीट जीतने का लक्ष्य ही है। अमरेंद्र निषाद, निषाद बिरादरी के बड़े नेता रहे जमुना निषाद के पुत्र हैं जबकि उनकी माता राजमति निषाद दो बार विधायक रह चुकी हैं।