जुबिली न्यूज डेस्क
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जेईई-नीट परीक्षा के मुद्दे पर कांग्रेस को समर्थन दिया है। टीएमसी का कांग्रेस के साथ खड़ा होना चर्चा का विषय बना हुआ है। कांग्रेस से उनकी नाराजगी जगजाहिर है। इसलिए कहा जा रहा है कि आखिर ऐसी क्या मजबूरी हो गई कि ममता नाराजगी भूलकर समर्थन के तैयार हो गईं।
जीएसटी और जेईई-नीट परीक्षा के मुद्दे ने विपक्ष को एकजुट होने का मौका दे दिया है। कांग्रेस की अगुआई में विपक्षी दलों की बैठक में दूरी बनाए रखने वाली तृणमूल कांग्रेस इस बार साथ खड़ी नजर आई।
मानसून सत्र से ठीक पहले हुई इस बैठक से संसद के अंदर और बाहर विपक्षी एकता की उम्मीद बढ़ी है।
कांग्रेस विपक्षी दलों को केंद्र सरकार के खिलाफ एकजुट करने की लगातार कोशिश करती रही है, पर पिछली कुछ बैठकों में तृणमूल कांग्रेस मौजूदर नहीं रही थी।
फिलहाल ममता के रुख में आए इस बदलाव को कांग्रेस रणनीति पश्चिम बंगाल से जोड़कर देख रहे हैं। दरअसल पश्चिम बंगाल में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं और बंगाल को लेकर बीजेपी बेहद आक्रामक है। ममता में यह नरमी बीजेपी की आक्रामकता की वजह से देखने को मिल रही है।
जानकारों का कहना है कि पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियां एकजुट होकर मोर्चा बना लेती हैं तो तृणमूल कांग्रेस के लिए बीजेपी का मुकाबला करना मुश्किल होगा।
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पार्टी के एक नेता ने कहा कि कांग्रेस के साथ ममता बनर्जी गठबंधन न भी करे तो उनकी कोशिश होगी कि कांग्रेस अकेले चुनाव लड़े। कांग्रेस और लेफ्ट एकजुट होते हैं तो अल्पसंख्यक मतदाताओं का भरोसा जीत सकता है। इसका सीधा नुकसान तृणमूल कांग्रेस को होगा। यही वजह है कि ममता ने स्थिति को समझते हुए अपना रुख नरम किया है। वह कांग्रेस के साथ अपने रिश्तों को सुधारना चाहती है। ताकि भाजपा को रोकने में मदद मिल सके।
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फिलहाल कांग्रेस की अगुवाई में हुई बैठक में तृणमूल कांग्रेस के साथ शिवसेना ने जिस तरह का रुख अपनाया है, उससे कांग्रेस उत्साहित है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि इससे विपक्षी एकजुटता को मजबूती मिलेगी। झारखंड के मुख्यमंत्री हमेंत सोरेन ने भी इस बात पर जोर दिया कि विपक्ष की आवाज कमजोर पड़ रही है। हम सबको मिलकर कार्यक्रम बनाना चाहिए।