न्यूज डेस्क
भारत के लिए महामारी कोई नई चीज नहीं है। भारत के लिए कोरोना वायरस नया है लेकिन महामारी नई नहीं है। भारत ने चेचक, पोलियो, प्लेग, कालरा जैसी महामारी पर विजय पाई है। इसीलिए उम्मीद की जा रही है कि अपने अनुभवों के आधार पर भारत कोरोना वायरस जैसी महामारी पर भी विजय पायेगा। अब तो विश्व स्वास्थ्य संगठन को भी भारत से उम्मीद हैं कि वह भारत अपने आसाधारण क्षमता से कोरोना संक्रमण से निपटेगा।
महामारी का भी अपना इतिहास है। तारीख के पन्ने महामारियों के इतिहास बदलने की मिसालों से भरे पड़े हैं। बीमारियों की वजह से सल्तनतें तबाह हो गईं। साम्राज्यवाद का विस्तार भी हुआ और इसका दायरा सिमटा भी। और यहां तक कि दुनिया के मौसम में भी इन बीमारियों के कारण उतार-चढ़ाव आते देखा गया।
भारत ने कई महामारी देखी है। फ्लू, चेचक, कालरा, प्लेग, टीवी जैसी कई महामारियों पर भारत ने विजय पाई है। शायद इसीलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक अहम बयान दिया है। संस्था के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर माइकल जे रेयान ने कहा है कि भारत के पास कोरोना वायरस के संक्रमण से निपटने की असाधारण क्षमता है क्योंकि उसके पास चेचक और पोलियो जैसी महामारियों को खत्म करने का अनुभव है।
रेयान ने कहा, ‘भारत एक बहुत ज्यादा आबादी वाला देश है और इस वायरस का भविष्य बड़ी और घनी आबादी वाले एक ऐसे ही देश में तय होगा।’ उन्होंने आगे कहा ‘यह बहुत ही महत्वपूर्ण है कि भारत जैसे देश दुनिया को रास्ता दिखाएं जैसा उन्होंने पहले किया है।’
पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया था प्लेग ने
बहुत दूर जाने की जरूरत नहीं है। महामारी को 1994 में गुजरात के सूरत में प्लेग की वजह से किस तरह लोग प्रभावित हुए थे समझा जा सकता हे। 1994 के प्लेग ने सूरत और गुजरात ही नहीं, बल्कि देश और दुनिया तक को हिलाकर रख दिया था।
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जैसे ही लोगों को इस महामारी के फैलने की खबर हुई, वे भागने लगे। कुछ ही दिनों में सूरत की लगभग 25 फीसदी आबादी शहर छोड़ कर चली गई। जानकारों के अनुसार आजादी के बाद लोगों का यह दूसरा बड़ा पलायन था। पहले शहर के रईस लोग अपनी-अपनी गाडिय़ों में निकल भागे, फिर निजी प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टर और यहां तक कि केमिस्ट भी। कई सरकारी अधिकारियों ने भी किसी न किसी बहाने छुट्टी लेकर शहर छोड़ दिया। ट्रेन, बस जैसे भी संभव था, लोग शहर से निकल गए।
सूरत हीरे और कपड़ा फैक्ट्रियों के लिए जाता है। यहां दूसरे राज्यों महाराष्ट्र , राजस्थान, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार और अन्य राज्यों के भारी संख्या में मजदूर काम करते थे। ये लोग भी तनख्वाह मिलते ही पलायन कर गए। उनके जरिए इस महामारी के अन्य राज्यों में भी फैलने की आशंका हो गई। कुल मिलाकर, पूरे देश में प्लेग के 6334 संभावित मामले दर्ज हुए। इनमें 55 लोगों की मौत हुई और विभिन्न जांच केंद्रों में 288 लोगों में इसकी पुष्टि का दावा किया गया।
इंफ्लुएंजा की वजह से करीब पौने दो करोड़ भारतीयों की हुई थी मौत
1919 में भारत में आए फ्लू से भारत बड़ा सबक ले सकता है। इस महामारी में करीब पौने दो करोड़ भारतीयों की मौत हुई थी जो विश्व युद्ध में मारे गये लोगों की तुलना में ज्यादा है। भारत ने उस वक्तअपनी आबादी का छह फीसदी हिस्सा इस बीमारी में खो दिया था। मरने वालों में ज्यादातर महिलाएं थीं। ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि महिलाएं बड़े पैमाने पर कुपोषण का शिकार थी। वो अपेक्षाकृत अधिक अस्वास्थ्यकर माहौल में रहने को मजबूर थी। इसके अलावा नर्सिंग के काम में भी वो सक्रिय थी।
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ऐसा माना जाता है कि इस महामारी से दुनिया की एक तिहाई आबादी प्रभावित हुई थी और करीब पांच से दस करोड़ लोगों की मौत हो गई थी। यह फ्लू सितंबर 1918 में दक्षिण भारत के तटीय क्षेत्रों में फैलनी शुरु हुई थी। यह फ्लू बॉम्बे (अब मुंबई) में एक लौटे हुए सैनिकों के जहाज से 1918 में पूरे देश में फैला था। हेल्थ इंस्पेक्टर जेएस टर्नर के मुताबिक इस फ्लू का वायरस दबे पांव किसी चोर की तरह दाखिल हुआ था और तेजी से फैल गया था।
इस फ्लू के चपेट में महात्मा गांधी के साथ उनके सहयोगी भी चपेट में आए थे। ये लोग किस्मत के धनी थे कि बच गए, लेकिन हिंदी के मशूहर लेखक और कवि सुर्यकांत त्रिपाठी निराला की बीवी और घर के कई दूसरे सदस्य इस बीमारी की भेंट चढ़ गए थे।