न्यूज डेस्क
वर्ष 2002 के चर्चित नीतीश कटारा हत्याकांड में तिहाड़ जेल में सजा काट रहे दोषी विकास यादव को उच्चतम न्यायालय से एक बाद फिर झटका लगा है। आज सुनवाई के दौरान कोर्ट ने विकास की पैरोल की याचिका को खारिज कर दिया।
पहली बार विकास यादव की पैरोल याचिका खारिज नहीं हुई है। इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट उसकी याचिका खारिज कर चुकी है।
आज सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपकी 25 साल की सजा बरकरार है। आपको परोल क्यों चाहिए? दरअसल विकास यादव ने उच्चतम न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी। उसने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें परोल देने से इनकार किया गया था।
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि विकास यादव 17.5 साल से जेल में बंद है। ये उसका मौलिक अधिकार है कि उसे पैरोल मिले। इस पर कोर्ट ने कहा कि 25 साल की सजा में मौलिक अधिकार कहां से आ गया?
वहीं इस मामले में विकास यादव का कहना था कि वह 17 साल से जेल में बंद हैं। उसे परोल मिलनी चाहिए क्योंकि उसे आज तक परोल नहीं मिली है। विकास यादव ने 4 सप्ताह की परोल की मांग की थी।
मालूम हो कि विकास यादव बाहुबली नेता डीपी यादव का बेटा है और वह नीतीश कटारा हत्याकांड में तिहाड़ जेल में 25 साल की सजा काट रहा है।
नीतीश कटारा हत्याकांड बहुत ही हाईप्रोफाइल मामला था। नीतीश कटारा की कहानी किसी फिल्म सरीखा है। जब नीतीश की हत्या की गई थी तो उनकी उम्र महज 25 साल थी। नीतीश के पिता प्रशासनिक अधिकारी थे।
ये है नीतीश हत्याकांड की पूरी कहानी
एक आईएएस अफसर के बेटे नीतीश कटारा अपनी क्लास में पढऩे वाली लड़की भारती यादव से प्रेम करते थे। भारती यादव उत्तर प्रदेश के बाहुबली नेता डीपी यादव की बेटी थी। नीतीश और भारती का रिश्ता बाहुबली नेता और उनके परिवार को पंसद नहीं था।
बताया जाता है कि इस बात को लेकर डीपी यादव परिवार ने नीतीश कटारा को कई बार धमकाया भी था। नहीं मानने पर विकास यादव ने हत्या की साजिश रची और फिर अपने चचेरे भाई विशाल यादव और सुखदेव पहलवान के साथ मिलकर नीतीश की हत्या कर दी थी।
सन 2002 में 16-17 फरवरी की रात गाजियाबाद में एक शादी समारोह के दौरान भारती यादव के भाई विकास यादव ने दोनों को एक साथ देख लिया। विकास को यह इतना नागवार गुजरा कि उसने नीतीश को अगवा कर लिया और फिर उसकी हत्या कर दी। इस वारदात में उसने अपने चचेरे भाई विशाल यादव और सुखदेव पहलवान की मदद ली थी।
पुलिस ने 20 फरवरी 2002 को जली हुई अवस्था में नीतीश की लाश बरामद की। 11 मार्च 2002 को पुलिस ने करनाल से अपहरण के दौरान इस्तेमाल की गई गाड़ी को भी बरामद किया था।
उत्तर प्रदेश पुलिस ने 31 मार्च 2002 को गाजियाबाद की कोर्ट में चार्जशीट दायर की। हत्याकांड के आरोपी विकास और विशाल को पुलिस ने 23 अप्रैल 2002 को मध्य प्रदेश से गिरफ्तार किया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने केस को गाजियाबाद से दिल्ली ट्रांसफर कर दिया।
30 मई 2008 को दोनों आरोपियों को दोषी पाते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई गई। 5 सितंबर 2008 को दोषियों ने फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने दोषियों को हत्या के अपराध के लिए 25 साल और सबूत नष्ट करने के आरोप में 5 साल की सजा सुनाई और कहा कि यह लगातार चलता रहेगा। हालांकि, इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 3 अक्टूबर 2016 को कहा कि दोनों सजाएं एक साथ चलेगी।
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