स्पेशल डेस्क
इतिहास के पन्नों में 12 मार्च की तारीख सुनहरे अक्षरों में दर्ज है। 89 साल पहले 1930 में इसी दिन ‘दांडी मार्च’ की शुरूआत हुई थी। इस मार्च के जरिए बापू ने अंग्रेजों के बनाए नमक कानून को तोड़कर उस सत्ता को चुनौती दी थी। ‘दांडी मार्च’ ने स्वतंत्रता आंदोलन के लिए एक बड़े मील के पत्थर का काम किया था।
दरअसल, भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान नमक के उत्पादन और विक्रय पर बड़ी मात्रा में कर लगाया गया था। नमक जीवन की जरूरी चीज होने के कारण भारतवासियों को इस कानून से मुक्त कराने और अपना अधिकार दिलवाने के लिये ये सविनय अवज्ञा का कार्यक्रम किया गया था।
दांडी एक शहर का नाम है, जहां जा कर बापू ने नमक बनाने के लिए अंग्रेजों के एकछत्र अधिकार वाला कानून तोड़ा और नमक बनाया था। तब गांधी जी ने नमक हाथ में लेकर कहा था कि ‘इसके साथ मैं ब्रिटिश साम्राज्य की नींव को हिला रहा हूं।’
80 लोगों के साथ शुरू की यात्रा
महात्मा गांधी ने 80 लोगों के साथ अहमदाबाद स्थित साबरमती आश्रम से नमक सत्याग्रह के लिए दांडी यात्रा शुरू की थी। दांडी तक की 241 मील की दूरी तय करने में उन्हें 24 दिन लगे और इस यात्रा में पूरे रास्ते हजारों लोग जुड़ते चले गए।
दांडी मार्च से जुड़ी खास बातें-
आणंद से लगे सरदार पटेल की कर्मभूमि करमसद और बारदोली से इस आंदोलन की नींव पड़ी। इस इलाके के किसानों ने सरदार को अपनी समस्याएं बताई, तो उन्होंने पूरे क्षेत्र का दौरा किया।
किसानों से सरदार का सीधा संपर्क होने के कारण ही गाँधी जी ने नमक सत्याग्रह की पूरी बागडोर उन्हें सौंपी। इस पूरी योजना और मार्ग का निर्धारण सरदार पटेल ने किया था।
सरदार की इस रणनीति से घबरा कर अंग्रेज़ों ने उन्हें 7 मार्च को गिरफ्तार कर लिया, ताकि गाँधी जी का मनोबल टूट जाए,लेकिन ऐसा नहीं हुआ और आंदोलन ने गति पकड़ ली।
इस आंदोलन की शुरूआत में 78 सत्याग्रहियों के साथ दांडी कूच के लिए निकले थे, लेकिन दांडी पहुंचते-पहुंचते पूरा आवाम बापू के साथ जुट गया था।
इस आंदोलन में दांडी पहुंचने से पहले गाँधी जी ने सूरत से होते हुये डिंडौरी, वांज, धमन के बाद नवसारी को अपनी यात्रा का पड़ाव बनाया।
24 दिन बाद 6 अप्रैल 1930 को दांडी पहुँचकर उन्होंने समुद्रतट पर नमक कानून को तोड़ा।