जुबिली न्यूज डेस्क
पूरी दुनिया को लोग वैज्ञानिकों की तरफ उम्मीद भरी नजर से देख रहे हैं। सभी को बस इंतजार है कोरोना वैक्सीन का। दुनिया के कई देशों में जगह-जगह कोरोना वैक्सीन पर काम हो रहा है। करीब एक दर्जन कोरोना वैक्सीन को आंशिक सफलता भी मिली है। साल के अंत तक दुनिया के कई देश टीका देने की स्थिति में होंगे। ऐसे में ग्लोबल कम्युनिटी की नजर इस बात पर भी है कि वैक्सीन तैयार हो जाने के बाद उसे पूरे विश्व में कैसे बांटा जाएगा और इसकी कीमत कितनी हो।
कोरोना महामारी सकी जद में दुनिया के ज्यादातर देश हैं। इसमें अमीर भी हैं और गरीब भी। इसीलिए इस पर मंथन हो रहा है की गरीबों तक वैक्सीन कैसे पहुंचाया जाए। फिलहाल कीमत को लेकर ग्लोबल वैक्सीन अलायंस का कहना है कि यह अधिकतम 40 डॉलर (3000 रुपये) हो सकती है।
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GAVI vaccine alliance के चीफ एग्जिक्युटिव सेट बर्कले जो कोवैक्स सुविधा को देख रहे हैं, उनका कहना है कि वर्तमान में वैक्सीन को लेकर कोई टार्गेट प्राइस नहीं रखा गया है। यह संभव है कि वैक्सीन को अलग-अलग देशों को अलग-अलग कीमत पर बांटा जाए। गरीब देशों को यह सस्ती कीमत पर मिले और अमीर देशों को इसके लिए ज्यादा कीमत चुकानी पड़े।
क्या है कोवैक्स सुविधा?
गौरतलब है कि ‘कोवेक्स सुविधा’ कोरोना वायरस के टीकों को दुनिया भर में तेजी से, निष्पक्ष और न्यायसंगत तरीके से पहुंचाने के लिए बनाया गया तंत्र है। गवी ग्लोबल वैक्सीन संगठन है। जिन 165 देशों ने इस समझौते में रुचि व्यक्त की है, वो दुनिया की लगभग 60 फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं।
इसमें से 75 देश अपने स्वयं के सार्वजनिक बजट से टीकों के निर्माण के लिए धन की व्यवस्था करेंगे। इसमें इनका साथ साथ कम आय वाले 90 देश देंगे, जोकि अपनी मर्जी से गवी के कोवेक्स अग्रिम बाजार प्रतिबद्धता (एएमसी) कार्यक्रम के लिए राशि दान दे सकते हैं।
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इस संगठन में दुनिया के हर महाद्वीप के देश शामिल हैं। साथ ही इसमें जी-20 के भी आधे से ज्यादा देश सम्मिलित हैं। गवी के अनुसार जैसे ही इस महामारी की वैक्सीन बनती है उसका वितरण सभी भागीदार देशों में इस तरह किया जाएगा कि प्रत्येक देश की 20 फीसदी आबादी के लिए इस दवा की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके।
इसके बाद जो वैक्सीन बचेगी वो देशों की जरुरत, महामारी के प्रकोप के आधार पर वितरित की जाएगी। दुनिया भर के कई देश और प्राइवेट कंपनियां इस महामारी की दवा की खोज में लगी हुई हैं। भारत में भी इस बीमारी की वैक्सीन पर काम चल रहा है।
गवी के अनुसार इस योजना में शामिल देशों को प्रोत्साहित किया जाएगा कि जिनको दवा की ज्यादा जरुरत नहीं है वो दूसरे देशों की मदद कर सकते हैं, जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों को बचाया जा सके।
मालूम हो कि अमेरिका सहित कई अमीर देश पहले ही वैक्सीन निर्माताओं से सौदा करने में लगे हैं, जिससे वो ज्यादा से ज्यादा वैक्सीन प्राप्त कर सकें। ऐसे में दुनिया भर के लिए ‘कोवेक्स सुविधा’ की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है।
कोवेक्स का लक्ष्य 2021 के अंत तक प्रभावी टीकों की दो अरब खुराकें प्रदान करना है, जिसको सभी सहयोगी देशों में बराबर अनुपात से बांटा जा सके। धन की व्यवस्था करने के लिए गवी ने कोवेक्स एडवांस मार्केट कमिटमेंट लॉन्च किया था, जिसका मकसद इस परियोजना के लिए धन इकट्ठा करना था।
पहले चरण के लिए करीब 15,048 करोड़ रुपए (200 करोड़ डॉलर) का लक्ष्य रखा गया है, जिसे अमीर देशों और निजी क्षेत्र से प्राप्त किया जाना है। इस योजना को सफलता भी मिल रही है क्योंकि इस फण्ड में अब तक 4,515 करोड़ रुपए (60 करोड़ डॉलर) जुटा लिए गए हैं। साथ ही एस्ट्राजेनेका से पहले ही दवाओं की 30 करोड़ खुराक कोवेक्स को दिए जाने पर समझौता हो चुका है।
कोवैक्स सुविधा 2021 के अंत तक 200 करोड़ डोज अपने सदस्य देशों तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है।
कीमत को लेकर अभी आखिरी फैसला नहीं
सेट बर्कले ने यूरोपियन यूनियन की उस खबर का खंडन किया जिसमें कहा गया कि कोवैक्स सुविधा अमीर देशों के लिए कोरोना वैक्सीन की कीमत मैक्सिमम 40 डॉलर तय की है। यूरोपियन यूनियन की तरफ से कहा गया था कि वह कोवैक्स फसिलटी के अलावा सस्ती कीमत पर वैक्सीन मिलने की संभावना तलाशेगा।
बर्कले ने यह भी कहा कि कोरोना वैक्सीन की दिशा में अभी जो सफलता मिली है वह आंशिक है। ऐसे में हम यह नहीं जानते हैं कि इसकी कीमत कितनी हो सकती है। कीमत इस बात पर भी निर्भर करती है कि किस वैक्सीन को आशातीत सफलता मिली है। ऐसे में हम अभी संभावनाओं के आधार पर कीमत को लेकर नतीजों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं। असल में कीमत का पता तभी लग पाएगा जब कोई वैक्सीन पूरी तरह तैयार हो जाएगी और कारगर होगी।