न्यूज डेस्क
पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ऐलान किया कि मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों का इन्कम टैक्स सरकारी खजाने से नहीं भरा जायेगा। यूपी ने तो ऐलान कर दिया है लेकिन देश के पांच अन्य राज्यों में अब भी मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों का इन्कम टैक्स सरकारी खजाने यानी जनता की जेब से भरा जा रहा है।
जिन राज्यों में जनता की गाढ़ी कमाई से मंत्रियों का इनकम टैक्स भरा जा रहा है, उनमें मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड शामिल हैं।
मार्च 2018 तक पंजाब में भी ऐसा किया जा रहा था, लेकिन मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने इससे संबंधित कानून को खत्म कर दिया।
यूं ही राजनीति सबकों आकर्षित नहीं करती। एक दौर हुआ करता था जब नेता, मंत्री मुफलिसी में रहते थे। आज समय बदल गया है। आज नेताओं के पास पैसा, पावर, सरकारी सुख-सुविधाएं सब कुछ हैं। चुनाव लड़ने वाले नेताओं का हलफनामा देखकर इनकी हैसियत का अंदाजा लगाया जा सकता है। सपा सुप्रीमो मायावती, सपा सरंक्षक मुलायम सिंह यादव, पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सम्पत्ति किसी से छिपी नहीं है।
यह भी पढ़ें : लोग हेल्मेट की जगह पतीला पहन कर क्यों चला रहे हैं गाड़ी
यह भी पढ़ें : सरदार सरोवर बांध : इतिहास की सबसे विवादास्पद परियोजना
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में यह कानून चार दशक पहले वजूद में आया था। उस समय यूपी के मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह थे और उनके ही नेतृत्व में उत्तर प्रदेश मंत्री वेतन, भत्ते एवं विविध कानून 1981 में बना।
उत्तर प्रदेश में इस कानून के चलते अब तक 19 मुख्यमंत्रियों और लगभग 1000 मंत्रियों को लाभ हुआ है। विश्वनाथ प्रताप सिंह ने इस कानून बनाने के पीछे तर्क दिया था कि राज्य सरकार को मंत्रियों के आयकर का बोझ उठाना चाहिए क्योंकि अधिकांश मंत्री गरीब पृष्ठभूमि से हैं और उनकी आय कम है।
सबसे दिलचस्प बात यह है कि राज्य सरकार पिछले चार दशक से मंत्रियों का आयकर चुका रही थी लेकिन उत्तर प्रदेश के अधिकांश राजनेताओं को भी इस कानून की जानकारी नहीं थी।
यह भी पढ़ें : ‘अयोध्या में राम मंदिर बनाने का भी साहस दिखाए मोदी सरकार’
यह भी पढ़ें : कश्मीर पर मुस्लिम देशों ने पाक को क्या नसीहत दी