प्रीति सिंह
सपा प्रमुख अखिलेश यादव के हौसले बुलंद हैं। पहली बार लोकसभा चुनाव की पूरी कमान अपने हाथ में लेने वाले अखिलेश आत्मविश्वास से लबरेज हैं। अपनी सूझबूझ और अनुभव के आधार पर अखिलेश फूंक-फूंककर कदम उठा रहे हैं, लेकिन वर्तमान में जो राजनैतिक जमीन तैयार हुई हैं उसमें चुनौतियों से निपटना आसान नहीं होगा। भले ही सपा अध्यक्ष के पास मोदी सरकार के नाकामी गिनाने के लिए अनेक मुद्दे मौजूद है लेकिन बसपा और आरएलडी के बीच अपना वजूद बचाना भी बड़ी चुनौती होगी अखिलेश के लिए।
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पहली बार अखिलेश यादव अपनी सूझबूझ से लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। अभी तक के चुनावों में उनके साथ उनके पिता सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव और चाचा शिवपाल साथ रहे हैं। अबकी बार अखिलेश बसपा और आरएलडी के साथ चुनाव मैदान में हैं। अखिलेश के निशाने पर भाजपा है। अखिलेश सार्वजनिक मंच से भाजपा की कमियां गिनाना नहीं भूलते तो वहीं अपने सरकार के कामकाज को भी गिनाना नहीं भूलते। भले ही सपा ‘काम बोलता है’ पर फोकस कर रही है लेकिन यह चुनावी समर सपा के लिए इतना आसान नहीं होगा। अखिलेश को भाजपा से चुनौती तो मिल ही रही है साथ ही कई अन्य चुनौतियां भी उनके समक्ष मौजूद हैं।
शिवपाल पेश करेंगे बड़ी चुनौती
अखिलेश के चाचा व प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल यादव ही अखिलेश को सबसे बड़ी चुनौती देने के लिए ताल ठोक रहे हैं। यदि बीजेपी से शिवपाल को सपोर्ट मिलता है तो शिवपाल अखिलेश की जड़ उखाडऩे में पीछे नहीं हटेंगे। वास्तविकता है कि मुलायम सिंह यादव भले ही सपा के मुखिया रहे हो लेकिन संगठन शुरु से शिवपाल ही देखते रहे हैं और चुनाव हमेशा संगठन लड़ाता है, नेतृत्व नहीं। तो इस स्थिति में ये संकट भी हो सकता है कि सपा का वोट बसपा में न जाये और बसपा का वोट सपा में न जाए। संगठन पर जितनी मजबूत पकड़ शिवपाल की रही थी, अखिलेश को ये साबित करना अभी बाकी है।
बसपा और रालोद के गठबंधन में सपा तलाश रही संजीवनी
अखिलेश यादव शुरु से महागठबंधन के सहारे बीजेपी को चित करने के फिराक में थे। महागठबंधन पर बात नहीं बन पायी तो उन्होंने यूपी में बसपा व आरएलडी के साथ मिलकर बीजेपी से लडऩे की रणनीति तैयार की। फिलहाल 38 सीट पर बसपा, 37 सीट पर सपा और तीन सीट पर आरएलडी ताल ठोकेगी। भले ही अखिलेश बसपा और आरएलडी के सहारे चुनावी वैतरणी पार करने की सोच रहे हैं, मगर इससे पार्टी के अंदर चुनौतिया बढ़ गई हैं। पिछले एक साल से अपने लिए जमीन तैयार कर रहे सपा कार्यकर्ता, पदाधिकारी चिंतित हैं।
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बहुत सारे सपा नेताओं का टिकट कटने की वजह से अंदरूनी चुनौती बढ़ गई है। अब इस स्थिति में अखिलेश के सामने चुनावी समर तक नेताओं के साथ-साथ कार्यकर्ताओं को समेटकर रखने की चुनौती और दूसरी बसपा और रालोद गठबंधन के बीच सपा का वजूद बचानेे की चुनौती बरकरार है।
कांग्रेस के साथ संबंध मधुर बनाये रखने की चुनौती
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव शुरु से कांग्रेस को गठबंधन में शामिल करने के पक्ष में थे लेकिन बसपा प्रमुख मायावती की वजह से उन्हें पीछे हटना पड़ा। कांग्रेस को लेकर अखिलेश हमेशा सॉफ्ट रहे हैं। उत्तर प्रदेश में 2017 में विधानसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस का गठबंधन इस बात का गवाह है। अखिलेश की पहल पर ही गठबंधन में कांग्रेस की सीटे 2 से बढ़ाकर 14 कर दी गई थी लेकिन कांग्रेस तैयार नहीं हुई। चूंकि बसपा प्रमुख मायावती गठबंधन में ज्यादा सीटें देकर कांग्रेस को लेने के पक्ष में नहीं है तो ऐसे में अखिलेश के सामने कांग्रेस से अपने संबंध बचाये रखने की भी चुनौती है।